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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
२२. अप्पन नैनार्य (सं० १५२०- १५७० वि० )
अप्पन नैनार्य ने पाणिनीयाष्टक पर 'प्रक्रिया - दीपिका' नाम्नी वृत्ति लिखी है । ग्रन्थकार का दूसरा नाम वैष्णवदास था । प्रक्रियादीपिका का एक हस्तलेख 'मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्तकालय' में विद्यमान है। देखो - सूचीपत्र भाग ३ खण्ड १ A, पृष्ठ ३६०१, ५ ग्रन्थाङ्क २५४१ । इसके आद्यन्त में निम्न पाठ है
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आदि में - श्रप्पननैनार्येण
वेङ्कटाचार्यसूनुना । प्रक्रियादीपिका सेयं कृता वात्स्येन धीमता ।।
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अन्त में - श्रीमद्वात्स्यान्वयपयः पारावारसुधाकरेण वादिमत्तेभकण्ठ रिपुकण्ठलुण्टाकेन श्रीमद्वेङ्कटार्थपादकमलचञ्चरीकेण श्रीमत्पर- १० वादिमतभयङ्करमुक्ताफलेन प्रप्पननैनार्याभिधश्रीवैष्णवदासेन कृता प्रक्रियादीपिका समाप्ता ।
इस लेख से स्पष्ट है कि अप्पन नैनार्य के पिता का नाम वेङ्कटार्य था, और वात्स्य गोत्र था ।
काल – हमारे मित्र श्री पं० पद्मनाभ राव ने १०-११-१९६३ के १५ पत्र में लिखा है
'प्रांध्र प्रदेश में वैयाकरणरूप से विख्यात 'नैनार्य' पदाभिधेय एक ही है । यह नैनार्य = नयनार्य अप्पन = प्रप्पण अप्पल = प्रपळ नाम से प्रसिद्ध है । यह विजयनगर के महाराजा कृष्णदेवराय सार्वभौम (सं० १५६६- १५८६ राज्यकाल ) के अष्ट दिग्गज पण्डितों में २० श्रन्यतम तेनालि रामलिङ्ग महाकवि का व्याकरणगुरु है । यह रामलिङ्ग ने 'पाण्डुरङ्ग विजयभु' नामक महाकाव्य के आदि में लिखा है । अप्पलाचार्य का वैयाकरणत्व 'अपशब्दभयं नास्ति अप्पलाचार्य सन्निधौ' से सुस्पष्ट है ।'
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इस निर्देश से सुव्यक्त है कि प्रप्पन नैनार्य का काल सं० १५२० २५ १५७० वि० के मध्य होना चाहिये ।
ग्रन्थ का 'प्रक्रिया -दीपिका' नाम होने से सन्देह होता है कि यह - ग्रन्थ हो, अथवा 'प्रक्रिया - कौमुदी' की टीका हो ।
प्रक्रिया -