________________
५३०
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास २३. अन्नम्भट्ट (सं० १५५०-१६०० वि०) महामहोपाध्याय अन्नम्भट्ट ने अष्टाध्यायी पर 'पाणिनीयमिताक्षरा' नाम्नी वृत्ति रची है । यह वृत्ति चौखम्बा संस्कृत सीरिज काशी
से १० खण्डों में प्रकाशित हो चुकी है। यह वृत्ति साधारण है। ५ अन्नम्भट्ट के विषय में 'महाभाष्यप्रदीप के व्याख्याकार' प्रकरण में हम पूर्व (पृष्ठ ४६०-४६१) लिख चुके है।
अन्नम्भट्ट ने 'पाणिनीय मिताक्षरा' वृत्ति प्रदीपोद्योतन से पूर्व लिखी थी। द्र० महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि, उपोद्घात, भाग १, पृष्ठ _xvii । हमारे संग्रह में विद्यमान 'पाणिनीय-मिताक्षरा' नष्ट हो गई १. है । अतः हम को विवश होकर 'महाभाष्यप्रदीपव्याख्यानानि' उपो
द्धात के लेखक श्री एम. एस. नरसिंहाचार्य के लेख पर अवलम्बित रहना पड़ रहा है।
२४. भट्टोजि दीक्षित (सं० १५७०-१६५० वि० के मध्य) १५ भट्टोजि दीक्षित ने अष्टाध्यायी की 'शब्दकौस्तुभ' नाम्नो महती . वृत्ति लिखी है। यह वृत्ति इस समय समग्र उपलब्ध नहीं होतो, केवल प्रारम्भ में ढाई अध्याय और चतुर्थ अध्याय उपलब्ध होते हैं ।
'शब्दकौस्तुभ' के प्रथमाध्याय के प्रथमपाद में प्रायः पतञ्जलि कैयट और हरदत्त के ग्रन्थों का दीक्षित ने अपने शब्दों में संग्रह किया है। यह भाग अधिक विस्तार से लिखा गया है, अगले भाग में संक्षेप से काम लिया है।
परिचय वंश–भट्टोजि दीक्षित महाराष्ट्रिय ब्राह्मण था। इसके पिता का नाम लक्ष्मीधर और लघु भ्राता का नाम रङ्गोजि भट्ट था। इनका ३० वंशवृक्ष इस प्रकार है