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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार ५०३ वामन के नाम से काशिका के उद्धरण अधोलिखित ग्रन्थों में मिलते हैं
अध्याय ६-भाषावृत्ति पृष्ठ ४१८, ४२०, ४८२। पदमञ्जरी भाग २, पृष्ठ ४२, ६३२॥
अध्याय ७–सीरदेवकृत परिभाषावृत्ति पृष्ठ ८, २४ । पदमञ्जरी ५ भाग २, पृष्ठ ३८६ ।
अध्याय ८-भाषावृत्ति पृष्ठ ५४३, ५५६ । पदमञ्जरी भाग १, पृष्ठ ६२४ ।
काशिका की शैली का सूक्ष्म दृष्टि से पर्यवेक्षण करने से भी यही , परिणाम निकलता है कि प्रथम पांच अध्याय जयादित्य की रचना है, १० और अन्तिम तीन अध्याय बामनकृत हैं । जयादित्य की अपेक्षा वामन का लेख अधिक प्रौढ़ है।
जयादित्य का काल इत्सिग के लेखानुसार जयादित्य की मृत्यु वि० सं० ७१८ के लगभग हुई थी।' यदि इत्सिंग का लेख और उसकी भारतयात्रा का १५ माना हुआ काल ठीक हो, तो यह जयादित्य की, चरम सीमा होगी। काशिका १।३।२३ में भारवि का एक पद्यांश उद्धृत है। महाराज दुविनीत ने किरात के, १५ वें सर्ग की टीका लिखी थी। दुविनीत का राज्यकाल सं ५३६-५६६ वि० तक है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। अतः भारवि सं० ५३६ वि० से पूर्ववर्ती है, यह निश्चय है। २० यह काशिका की पूर्व सीमा है।
10-, वामन का काल संस्कृत वाङ्मय में वामन नाम के अनेक विद्वान् प्रसिद्ध हैं । एक वमिन "विश्रान्तविद्याधर' संज्ञक जने व्याकरण का कर्ता है। दूसरा
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१. 'इत्सिग की भारतयात्रा, 'पृष्ठ २७० ।
२. संशय्य कर्णादिषु तिष्ठते यः।' तिरात ३॥१४॥ । ३. देखो पूर्व पृष्ठ ४९८ । ४. देखो-पूर्व पृष्ठ ४६१ । ५. वामनो विश्रान्तविद्याधरव्याकरणकर्ता । गणरत्नमहोदधि, पृष्ठ २।