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अष्टाध्यायी के वृत्तिकार
५१६ है-उम्बेकप्रणीत ‘श्लोकवातिकटीका' और 'मालतीमाधव' दोनों के प्रारम्भ में 'ये नाम केचित् प्रथयन्त्यवज्ञाम्' श्लोक समानरूप से उपलब्ध होता है। अतः उम्बेक और भवभूति दोनों एक व्यक्ति हैं। मीमांसक-सम्प्रदाय में उसकी 'उम्बेक' नाम से प्रसिद्धि है, और कविसम्प्रदाय में 'भवभूति' नाम से । मालतीमाधव में भवभूति ने अपने ५ गुरु का नाम 'ज्ञाननिधि' लिखा है। क्या ज्ञाननिधि भट्ट कुमारिल का नामान्तर था ? उम्बेक भट्ट कुमारिल का शिष्य हो वा न हो. परन्तु श्लोकवातिकटीका, मालतीमाधव और उत्तररामचरित के अन्तरङ्ग साक्ष्यों से सिद्ध है कि उम्बेक और भवभूति दोनों नाम एक व्यक्ति के हैं। पं० सीताराम जयराम जोशी ने अपने संस्कृत साहित्य १० के संक्षिप्त इनिहास में उम्बेक को भवभूति का नामान्तर लिखा है। परन्तु मीमांसक उम्बेक को उससे भिन्न लिखा है, यह ठीक नहीं। भवभूति का मीमांसक होना 'पदवाक्यप्रमाणज्ञ' विशेषण से विस्पष्ट है। __ महाकवि भवभूति महाराज यशोवर्मा का सभ्य था । इस कारण १५ भवभूति का काल सं०७८०-८०० वि० के लगभग माना जाता है।' प्रतः भवभूति के द्वारा स्मृत भीश्वर सं० ७८० से पूर्ववर्ती हैं । कितना पूर्ववर्ती है, यह अज्ञात है।
भवभूति का व्याकरण-ग्रन्थ-दुर्घटवृत्ति ७।२।११७ में 'ज्योतिष शास्त्रम्' में वृद्धयभाव के लिए भवभूति का एक वचन उद्धृत है। २० उससे विदित होता है कि भवभूति ने कोई व्याकरण ग्रन्थ भी लिखा था। अथवा दुर्घटवृत्तिकार ने भवभूति के किसी अज्ञातग्रन्थ से यह उद्धरण दिया हो।
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. १५. भट्ट जयन्त (सं० ८२५ वि० के लगभग)
न्यायमञ्जरीकार जरन्नैयायिक भट्ट जयन्त ने पाणिनीय अष्टा
१. संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ३८६ । ___२. संस्कृत कविचर्चा, पृष्ठ ३१३; संस्कृत साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, पृष्ठ ३८६ ।
३. उच्यते-संज्ञापूर्वकानित्यत्वादिति भवभूति: । पृष्ठ ११५। ४. माचार्य-पुष्पाञ्जलि वाल्यूम में पं० रामकृष्ण कवि का लेख, पृष्ठ ४७ ।