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महाभाष्य के टीकाकार
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उपयुक्त वंशवृक्ष में निर्देशित महादेवसूरि का पुत्र कृष्णसूरि का पौत्र शेष विष्णु से भिन्न एक शेष कृष्ण - पुत्र शेषविष्णु और उपलब्ध होता है ।
शेषकृष्ण श्रात्मज शेष विष्णु - इस शेषविष्णुकृत परिभाषा - प्रकाश ग्रन्थ के प्रथम पाद पर्यन्त का एक हस्तलेख भण्डारकर प्राच्य ५
( पिछले पृष्ठ की शेष टिप्पणियां)
२. रामचन्द्राचार्यकृत 'कालनिर्णयदीपिका' के अन्त में 'इति श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्यगोपाल गुरुपूज्यपाद रामचन्द्राचार्य कृत कालदीपिका समाप्ता' पाठ उपलब्ध होता है । इस से ज्ञात होता है कि गोपालाचार्य संन्यासी हो
गया था ।
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३. 'मनोरमाकुचमर्दन' और 'महाभाष्यप्रदीपोद्योतन' में इसका नाम वीरेश्वर लिखा है । चक्रपाणिदत्त ने 'प्रौढमनोरमाखण्डन' में 'वटेश्वर' नाम लिखा है । इसका एक हस्तलेख इण्डिया अफिस लन्दन के पुस्तकालय में विद्यमान है, उस में 'वीरेश्वर' पाठ ही है। सूची ० भाग २, पृष्ठ १६२ ग्रन्थाङ्क ७२८ । सम्भव है 'वटेश्वर' वीरेश्वर का लिपिकर - प्रमाद जन्य पाठ १५ हो । कौण्ड भट्ट ने वैयाकरण भूषणसार के प्रारम्भ में वीरेश्वर को 'सर्वेश्वर ' नाम से स्मरण किया है ।
४. नागनाथ को नागोजि भी कहते हैं ।
५. विट्ठल ने प्रक्रिया कौमुदी के अन्त में १४ वें श्लोक में स्मृति अपने समसामयिक 'जगन्नाथाश्रम' का नाम लिखा है । उसका शिष्य 'नृसिंहाश्रम' २० और उसका शिष्य 'नारायणाश्रम' था। नृसिंहाश्रम ने 'तत्त्वविवेक' की पूर्ति सं ० १६०४ वि० में की थी, और इस पर स्वयं 'तत्त्वार्थविवेकदीपन' टीका भी लिखी है। ये नर्मदा तीरवासी थे । अप्पय्य दीक्षित ने न्यायरक्षामणि, परिमल प्रादि ग्रन्थ नृसिहाश्रम की प्रेरणा से लिखे थे । नारायणश्रम ने नृसिंहाश्रम के ग्रन्थों पर व्याख्याएं लिखी हैं। हिन्दुत्व, पृष्ठ ६२४, ६२५, ६२७ ॥
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६. आफ्रेक्ट ने कृष्णसूरि को शेष नारायण का पिता लिखा है, वह अशुद्ध है। यह हम पूर्व (पृष्ठ ४३२) लिख चुके हैं ।
७. यह 'स्वरप्रक्रिया' का रचयिता है। द्र० – पृष्ठ ४३६, टि० १ ।