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तेरहवां अध्याय
अनुपदकार और पदशेषकार व्याकरण के वाङमय में अनुपदकार और पदशेषकार नामक वैयाकरणों का उल्लेख मिलता है। अनेक ग्रन्थकार पदकार के नाम से पातञ्जल महाभाष्य के उद्धरण उद्धृत करते हैं।' तदनुसार ५ पतञ्जलि का पदकार नामान्तर होने से स्पष्ट है कि महाभाष्य का एक नाम 'पद' भी था। शिशुपालवध के 'अनुत्सूत्रपदन्यासा" श्लोक की व्याख्या में बल्लभदेव भी 'पद' शब्द का अर्थ 'पद शेषाहिविरचितं भाष्यम्' करता है । इससे स्पष्ट है कि 'अनुपदकार' का अर्थ अनुपद=महाभाष्य के अनन्तर रचे गये ग्रन्थ का रचयिता, और पद- १० शेषकार का अर्थ पदशेष=महाभाष्य से बचे हुए विषय के प्रतिपादन करनेवाले ग्रन्थ का रचयिता है । इसीलिये इनका वर्णन हम महाभाष्य और उस पर रची गई व्याख्यानों के अनन्तर करते हैं
__ अनुपदकार अनुपदकार का अर्थ-अनुपदकार का अर्थ है-'अनुपद' का १५ रचयिता।
अनुपद-'चरणव्यूह यजुर्वेद खण्ड' में एक अनुपद उपाङ्गों में गिना गया है । 'अनुपद' नाम का सामवेद का एक सूत्रग्रन्थ भी है। प्रकृत में 'अनुपद' का अर्थ पूर्वलिखित 'पद-महाभाष्य के अनु= अनुकूल लिखा गया ग्रन्थ' ही है। क्योंकि अनुपदकार नाम से प्रागे २० उध्रियमाण वचन व्याकरण-विषयक हैं।
अनुपदकार का निर्देश-धूर्तस्वामी ने आपस्तम्ब श्रौत ११ । ६।२ के भाष्य में अनुपदकार का उल्लेख किया हैं। यह वैदिक ग्रन्थकार है। रामाण्डार ने आपस्तम्ब श्रौत ११ । ६ । २ की धूर्त
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१. देखो-पूर्व पृष्ठ ३५८-५६।
२. २ । ११२॥ ३. तुलना करो पदशेषो ग्रन्थविशेषः । पदमञ्जरी ७ । २६८॥ ४. तुलना करो-अनुन्यास पद । तथा देखो-अगले पृष्ठ का विवरण । ५. अनुपदकारस्य तूर्ध्वबाहुना..............।