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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
कई विद्वान् कैयट की पंक्ति का प्रथम अर्थ समझ कर महाभाष्यनिर्दिष्ट श्लोकों को संग्रह के श्लोक मानते हैं। परन्तु हमारा विचार है कि ये श्लोक महाभाष्यकार के हैं ।
पदमञ्जरी और संग्रह-हरदत्त ने पदमजरी में आठ स्थानों पर संग्रहश्लोक लिखे है ।' उन में कुछ महाभाष्यपठित श्लोक हैं, और कुछ हरदत्त के स्वविरचित प्रतीत होते हैं । हरदत्त ने जिस विषय को प्रथम गद्य में विस्तार से लिखा, अन्त में उसी को संक्षेप से श्लोकों में संग्रहीत कर दिया ।
प्रक्रियाकौमुदी-टोका और संग्रह-विट्ठल काशिका में उद्धृत १० 'एकस्मान्ङाणवटा' आदि श्लोक को संग्रह के नाम से उद्धृत करता है। यहां संग्रह शब्द से व्याडि का ग्रन्थ अभिप्रेत नहीं है।
व्यासभाष्य और संग्रह-योगदर्शन के व्यासभाष्य में एक संग्रह श्लोक उद्धृत है। वह व्याडि का नहीं है ।
चरक और संग्रह--चरक सूत्रस्थान अध्याय २६ में 'संग्रह' शब्द १५ का प्रयोग मिलता हैं-त्रिविधस्यायुर्वेदसूत्रस्य ससंग्रहव्याकरणस्य... प्रवक्तारः । यह संग्रहपद संक्षिप्त वचन के लिए प्रयुक्त हुआ ।
यज्ञकल-नाटक और संग्रह-कुछ वर्ष हुए गोण्डल (काठियावाड़) से भास के नाम से एक यज्ञफल नाटक प्रकाशित हया है। उस के पृष्ठ ११६ पर लिखा है-ससूत्रार्थसंग्रहं व्याकरणम । ___रामायण उत्तरकाण्ड और संग्रह-रामायण उत्तरकाण्ड में लिखा है-हनुमान ने संग्रहसहित व्याकरण का अध्ययन किया था। उत्तरकाण्ड आदिकवि वाल्मीकि की रचना नहीं है, पर है पर्याप्त प्राचीन
१. ४।२१७८, पृष्ठ ६८; ४।२१८, ६ पृष्ठ १२७; ५।३।८३, पृष्ठ ३६२; ६।११६८, पृष्ठ ४५१; ६३११६९ पृष्ठ ४५३ इत्यादि । २५ २. संग्रहश्लोकानुसारेण कथयति-एकस्मान् । भाग १, पृष्ठ २० ।
भाषावृत्ति का व्याख्याता सृष्टिधर इसे भाष्यवचन कहता है । यह उस की भूल है । महाभाष्य में यह वचन उपलब्ध नहीं होता।
३. ब्राह्मस्त्रिभूमिको लोकः प्राजापत्यस्ततो महान् । माहेन्द्रश्च स्वरित्युक्तो दिवि तारा भुवि प्रजाः ॥ इति संग्रहश्लोकः । व्यासभाष्य ३।२६ ॥
४. ससूत्रवृत्त्यर्थपदं महार्थं ससंग्रहं सिध्यति वै कपीन्द्रः ३६।४४ ॥