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पूर्वोक्त उद्धारणों से स्पष्ट है कि सौनाग वार्तिक कात्यायनीय वार्तिकों से अत्यधिक विस्तृत थे । महाभाष्य ४ | १ | १५ में 'अत्यल्प - मिदमुच्यते' लिख कर उद्धृत किया हुआ वार्तिक सौनागों का है, यह पूर्व लेख से स्पष्ट है । महाभाष्य में अनेक स्थानों पर 'प्रत्यल्पमिदमुच्यते' लिखकर कात्यायनीय वार्तिकों से विस्तृत वार्तिक उद्धृत किये हैं ।" बहुत सम्भव है वे सब सौनाग वार्तिक हों ।
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शृङ्गारप्रकाश में महावातिककार के नाम से महाभाष्य २।११५१ में पठित एकवार्तिक उद्धृत है । हमारा मत है कि यह महावार्तिककार सौनाग है ।
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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
सौनागों का वार्तिक कहा है । अतः यह सौनाग वार्तिक है, यह स्पष्ट है | यह वार्तिक भी कात्यायनीय वार्तिक से बहुत विस्तृत हैं । महाभाष्यस्य सौनाग वार्तिकों की पहचान
महाभाष्य ४ २ ६५ में महावार्तिक के अध्येताओं के लिए प्रयुज्यमान माहावातिक पद का निर्देश मिलता है। ये महावार्तिक १५ सम्भवतः सौनाग के वार्तिक ही हैं।
सौनाग मत का अन्यत्र उल्लेख
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महाभाष्य के अतिरिक्त भर्तृहरि की महाभाष्य टीका काशिका, भाषावृत्ति क्षीरतरङ्गिणी, धातुवृत्ति तथा मल्लवादिकृत द्वादशार
१. एवं हि सोनागाः पठन्ति — नस्नीक० ।
२. महाभाष्य २/४/४६ || ३|१|१४, २२, २५, ६७।३।२।२६ इत्यादि ॥ ३. ननु च द्वन्द्वतत्पुरुषयोरुत्तरपदे नित्यसमासवचन मिति माहावार्तिककारः पठति । शृङ्गारप्रकाश, पृष्ठ २६ । ४. इह मा भूत - माहावार्तिकः । ५. नैव सौनागदर्शनमाश्रीयते । हस्तलेख, पृष्ठ ३१; पूना सं० पृ० २३१ ६. सौनागाः कर्मणि निष्ठायां शकेरिटमिच्छन्ति विकल्पेन,
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७।२।१७।।·
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७. निष्ठायां कर्मणि शकेरिड् वेति सौनागाः । ७।२।१७ ॥ ८. धातूनामर्थनिर्देशोऽयं प्रदर्ननार्थ इति सौनागाः । यदाहु:--क्रियावाचित्वमाख्यातुमेकोऽत्रार्थः प्रदर्शितः । प्रयोगतोऽनुगन्तव्या अनेकार्था हि घातवः ।। देखो मद्रास राजकीय हस्तलेख पुस्कालय का सूचीपत्र, पृष्ठ १८४६ । रोमनाक्षरों में मुद्रित जर्मन संस्करण में 'घातूना यदाहुः' पाठ नहीं है । 'क्रियावाचित्वमाख्यातुम्' श्लोक चान्द्रधातुपाठ के अन्त में भी मिलता है । द्र०-क्षीरत/ ३० ङ्गिणी पृ० ३, हमारा संस्क० ।
६. शक धातु पृष्ठ ३०१, अस् धातु पृष्ठ ३०७, शक्ल धातु पृष्ठ ३१६ ।