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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन
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इन प्रमाणों से विस्पष्ट है कि पाणिनि ने अष्टाध्यायी संहितापाठ में रची थी । यद्यपि पाणिनि ने प्रवचनकाल में सूत्रों का विच्छेद अवश्य किया होगा (क्योंकि उसके विना सूत्रार्थ का प्रवचन सम्भव नहीं), तथापि महाभाष्यकार ने उसके संहितापाठ को ही प्रामाणिक माना है।
सूत्रपाठ एकश्रुतिस्वर में था महाभाष्य के अध्ययन से विदित होता है कि पाणिनि ने समस्त सूत्रपाठ एकश्रतिस्वर में पढ़ा था। टीकाकार कहीं-की स्वरविशेष की सिद्धि के लिए विशिष्टस्वर-युक्त पाठ मानते हैं। कैयट ने कुछ प्राचीन वैयाकरणों के मत में अष्टाध्यायी में एकश्रुतिस्वर ही १० माना है। ___ नागेशभट्ट सूत्रपाठ को एकश्रुतिस्वर में नहीं मानता। वह अपने पक्ष की सिद्धि में 'चतुरः शसि सूत्रस्थ महाभाष्य की 'पायुदात्तनिपाननं करिष्यते' पंक्ति को उद्धृत करता है। परन्तु यह पंक्ति ही स्पष्ट बता रही है कि सूत्रपाठ सस्वर नहीं था, एकश्रुति में था। १५ अन्यथा महाभाष्यकार 'करिष्यते' न लिख कर 'कृतम्' पद का प्रयोग करता । इतना ही नहीं, यदि अष्टाध्यायी की रचना पाणिनि ने सस्वर की होती, तो वह अस्थिधिसक्थ्यक्षणामनङ् उदात्त: (७।१। ७५) में उदात्त पद का निर्देश न करके 'अनङ' के प्रकार को ही उदात्त पढ़ देता । अतः सूत्रपाठ की रचना एकश्रुतिस्वर में मानना २०
१. अभेदका गुणा इत्येव न्याय्यय । कुत एतत् ? यदम् 'अस्थिदघिसक्थ्यक्ष्णामनदात्तः' इत्युदात्तग्रहणं करोति । गदि हि भेदका गुणा: स्युः, उदात्तमेवोच्चारयेत् । महाभाष्य १११११॥ एकश्रुतिनिर्देशात् सिद्धम् । ६।४।१७२ ॥
२. अन्ये त्वाहुः--एकश्रुत्या सूत्राणि पठ्यन्ते इति । भाष्यप्रदीपोद्योत १। १३१॥ पृष्ठ १५३, निर्णयसागर संस्क०। ३. अष्टा० ६।१।१६७॥ २५
४. नन्वेवमपि चतसर्याधुदात्ततिपातनसामर्थ्याच्चतस्र इत्यत्र 'चतुरः शसि' इत्यस्याप्रवत्तिरिति भाष्योक्तमनुपपन्नम् ... । सम्पूर्णाष्टाध्यायी आचार्येणैकश्रुत्या पठितेत्यत्र न मानम् । क्वचित्कस्यचित् पदस्यैकश्रुत्या पाठो यथा दाण्डिनायनादिसूत्रे ऐक्ष्वाकेति, एतावदेव भाष्याल्लभ्यते । भाष्यप्रदीपोद्योत १।१।१पृष्ठ १५३, निर्णयसागर संस्क० । परिभाषेन्दुशेखर में 'अभेदका ३० गुणा: परिभाषा (११८) के व्याख्यान में भी यही लिखा है ।