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आचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङमय
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गार्ग्य, गालव और शाकटायन के व्याकरण-संबन्धी नियम पाणिनि ने नामोल्लेखपूर्वक उद्धृत किये हैं। पतञ्जलि के काल में निरुक्त व्याख्यातव्य ग्रन्थ माना जाता था। महाभाष्य में लिखा है-निरुक्तं व्याख्यायते, व्याकरणं व्याख्यायते इत्युच्यते । यास्क और उससे प्राचीन नरुक्ताचार्यों के विषय में श्री पं० भगवद्दत्तजी विरचित ५ 'वैदिक वाङमय का इतिहास' का 'वेदों के भाष्यकार' शीर्षक भाग २ देखना चाहिये।
१०. छन्दःशास्त्र-पाणिनि ने किसी विशेष छन्दःशास्त्र का नामोल्लेख अपने व्याकरण में नहीं किया, परन्तु गणपाठ ४।३।७३ में छन्दःशास्त्र के छन्दोविचिति, छन्दोमान, छन्दोभाषा' ये तीन' १० पर्याय पढ़े हैं। इनमें प्रथम दो पद छन्दःशास्त्र के लिये ही प्रयुक्त होते हैं । छन्दोभाषा पद किन्हीं के मत में वैदिक भाषा का वाचक है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। परन्तु तस्य व्याख्यान: का प्रकरण होने से छन्दोभाषा भी ग्रन्थविशेष का ही वाचक है, यह निचित है। महाभाष्य ११२।३२ में छन्दःशास्त्र पद प्रातिशाख्य के लिये प्रयुक्त हुआ। १५
गणपाठ ४।३।७३ में निर्दिष्ट नामों से विविध प्रकार के छन्दःशास्त्रों और उनके व्याख्यानग्रन्थों ('तस्य व्याख्यान:' का प्रकरण होने से) का सद्भाव विस्पष्ट है। अष्टाध्यायी के 'छन्दोनाम्नि ५ सूत्र से छन्दोवाचक 'विष्टार' शब्द की सिद्धि दर्शाई है। यह वैदिक छन्द है। छन्दो के विविध प्रकार के 'प्रगाथ' संज्ञक समूहों के वाचक २० पदों की प्रसिद्धि के लिए पाणिनि ने 'सोऽस्यादिरिति च्छन्दसः प्रगाथेषु, सूत्र रचा है। प्रसिद्ध छन्दःशास्त्रकार पिङ्गल पाणिनि का अनुज था, यह हम पाणिनि के प्रकरण में लिख चुके हैं। पिङ्गल ने अपने छन्दःशास्त्र में क्रौष्टुकि (३।२९), यास्क (३।३०), ताण्डी (३.३६), सतव (५।१८७।१०), काश्यप (७६), रात (७.१३), २५ माण्डव्य (७॥३४) नामक सात छन्दःसूत्रकारों के मत उद्धृत किए
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१. ४।३।३६॥ २. किन्हीं हस्तलेखों में 'छन्दोविजिनी' नाम भी मिलता है । तदनुसार चार पर्याय होंगे। ३. पूर्व पृष्ठ २८४ ।
४. व्याकरणनामेयमुत्तरा विद्या। सोऽसी छन्दःशास्त्रेष्वभिविनीत उपलध्याधिगन्तुमुत्सहते । नागेश–छन्दःशास्त्रेषु प्रातिशाख्य शिक्षादिषु।
५. अष्टा० ३॥३॥३४॥ ६. अष्टा० ४।२।५५॥ ७. पूर्व पृष्ठ १९८ ।
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