________________
श्राचार्य पाणिनि के समय विद्यमान संस्कृत वाङ् मय
२७६
१४
उसका एक शिष्य आश्वलायन है ।' उसी ने आश्वलायन श्रौत और गृह्यसूत्रों का प्रवचन किया है । शौनक का दूसरा शिष्य कात्यायन है, जिसने कात्यायन श्रौत और गृह्यसूत्रों की रचना की ( वर्तमान में उपलब्ध कात्यायन स्मृति आधुनिक ) है | अतः ये ग्रन्थ पाणिनि के काल में अवश्य विद्यमान रहे होंगे । अष्टाध्यायी के 'यज्ञकर्मण्यजप - ५ न्यूङ्खसामसु " सूत्र में 'न्यूज' का उल्लेख है | ये न्यूङ्ख आश्वलायन श्रौत ७।११ में मिलते हैं । महाभाष्य ४ |२| ६० में 'विद्यालक्षणकल्पान्तादिति वक्तव्यम्' वार्तिक के उदाहरण 'पाराशरकल्पिकः, मातृकल्पिक:' दिये हैं । अष्टाध्यायी ४ | ३ | ६० र ४ | ३ | ६७, ७०, ७२ से विदित होता है कि पाणिनि के समय 'राजसूय, वाजपेय, श्रग्निष्टोम १० पाकयज्ञ, इष्टि' आदि विविध यज्ञों पर प्रक्रिया ग्रन्थ रचे जा चुके थे । पाणिनि के 'यज्ञे समि स्तुवः प्रे स्त्रोऽयज्ञे, ' परौ यज्ञे, प्रयाजानुयाजौ यज्ञाङ्गे" आदि सूत्रों में यज्ञविषयक कई पारिभाषिक शब्दों का उल्लेख मिलता है । अष्टाध्यायी के छन्दोगौक्थिकयाज्ञिकबह वृचनटाञ्ञ्य: सूत्र में छन्दोग, प्रौक्थिक," याज्ञिक, बह वृच और नट १५ का निर्देश है । काशिकाकार ने कात्यायन के 'चरणाद्धर्माम्नाययोः" .99 वार्तिक का सम्बन्ध इस सूत्र में करके नट शब्द से भी धर्म और आम्नाय अर्थ में प्रत्यय का विधान किया है, " यह ठीक नहीं है, क्योंकि नट शब्द चरणवाची नहीं है । अत एव प्राचार्य चन्द्रगोमी 'यो नृत्ये "" पृथक सूत्र रच कर नट शब्द से केवल नृत्य
अर्थ २०
२. पं० भगवद्दत्तजी कृत 'भारतवर्ष का बृहद् इतिहास' भाग १, पृष्ठ २७ (द्वि० सं०) । २. एको हि शौनकाचार्य शिष्यो भगवान् कात्यायनः । वेदार्थदीपिका पृष्ठ ५७ ॥ ३. कात्यायनगृह्य पारस्करगृह्य से भिन्न हैं । इसका प्रकाशन हमने प्रथम वार इसी वर्ष (सं० २०४०) किया है ।
४. अष्टा० १।२१३४॥
५. अष्टा० ३।३।३१॥
७. भ्रष्टा० ३।३।४७॥
६. श्रष्टा० ३।३।३२॥
८. अष्टा० ७७३।७२ ॥
६. अष्टा० ४।३।१२६ ॥
१०. उक्थशास्त्र का निर्देश गार्ग्य के उपनिदान सूत्र के अन्त में तथा चरण
व्यूह के याजुषखण्ड में भी उपलब्ध होता है । ११. १२. चरणाद्धर्माम्नाययो:,तत्साहचर्यान्नट शब्दादपि १३. चान्द्रव्याकरण ३ | ३ | ६१ ॥
२५
महाभाष्य ३।४।१२०॥ ३० धर्माम्नाययोरेव भवति ।