________________
१३ पाणिनीयाष्टक में अनुल्लिखित प्राचीन प्राचार्य ९७
६. गाथाएं =महाभारत वनपर्व ८८।५ में इन्द्रगीत गाथाओं का उल्लेख मिलता है।
४-वायु (८५०० वि० पू०) तैत्तिरीय संहिता ६।४७ में लिखा है-इन्द्र ने वाणी को व्याकृत ५ करने में वायु से सहायता ली थी।' तैत्तिरीय संहिता का यह स्थल विशुद्ध ऐतिहासिक है, आलङ्कारिक नहीं है । अतः स्पष्ट है कि इन्द्र को व्याकरण की रचना में सहयोग देने वाला वायु भी निस्सन्देह ऐतिहासिक व्यक्ति है । इन्द्र और वायु के सहयोग से देववाणी के व्याकरण की सर्वप्रथम रचना हई। इसीलिये कई स्थानों में वाणी के १० लिये 'वाग् वा ऐन्द्रवायवः'-अादि प्रयोग मिलते हैं। वायु पुराण २।४४ में वायु को 'शब्दशास्त्र-विशारद' कहा है । यामलाष्टक तन्त्र में आठ व्याकरणों में वायव्य व्याकरण का भी उल्लेख किया है।' कवीन्द्राचार्य के सूचीपत्र में एक 'वायु-व्याकरण' का उल्लेख है। हमें कवीन्द्राचार्य के सूचीपत्र में निर्दिष्ट वायु-व्याकरण की प्राचीनता में १५ सन्देह है।
भार्या-वायु की भार्या का नाम अजनी था।
पुत्र-वायु का पुत्र लोकविश्रुत महाबली हनुमान् था। इस की माता अञ्जनी थी। हनुमान् भी अपने पिता के समान शब्दशास्त्र का महान् वेत्ता था ।
प्राचार्य-वायु पुराण १०३१५८ के अनुसार ब्रह्मा ने मातरिश्वा =वायु के लिये पुराण का प्रवचन किया था।
२०
२५
१. वाग्वै पराच्यव्याकृतावदत् ते देवा इन्द्रमब्रुवन्निमां नो वाचं व्याकुर्विति सोऽब्रवीद्वरं वर्ण, मह्य चैव वायवे च सह गृह्याता इति ।
२. मै० सं० ४।५।८॥ कपि० ४२॥३॥
३. ऋग्वेद कल्पद्रुम की भूमिका में उद्धृत । पृष्ठ ११४, हमारा हस्तलेख । , ४. सूचीपत्र पृष्ठ ३ । ५. अञ्जनीगर्भसम्भूतः । वायु पुराण ६०१७२।।
६. नून व्याकरणं कृत्स्नमनेन बहुधा श्रुतम् । बहु व्याहरताऽनेन न किञ्चिदपभाषितम् ॥ रामायण किष्किन्धा० ३।२६ ।।
७. ब्रह्मा ददौ शास्त्रमिदं पुराणं मातरिश्वने ।