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२३४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास क्या सूत्रों में वार्तिकांशों का प्रक्षेप काशिकाकार का है ?
कैयट' हरदत्त आदि वैयाकरणों का मत है कि जिन जिन सूत्रों में वार्तिकांशों का पाठ मिलता है, वह काशिकाकार का प्रक्षेप है । परन्तु हमारा विचार है कि ये प्रक्षेप काशिकाकार के नहीं हैं, अपितु उससे बहुत प्राचीन हैं। हमारे इस विचार में निम्न कारण हैं
पाणिनि का सूत्र है-अध्यायन्यायोद्यावसंहाराश्च । इस विषय में महाभाष्य में वार्तिक पढ़ा है-धविधाववहाराधारावायानामुपसंख्यानम् । काशिकाकार ने 'अध्यायन्यायोद्यावसंहाराधारावायाश्च
पाठ मान कर चकार से 'अवहार' प्रयोग का संग्रह किया है । यदि १० वार्तिकान्तर्गत 'आधार' और 'पावाय' पदों का सूत्रपाठ में प्रक्षेप
काशिकाकार ने किया होता, तो वह वार्तिक-निर्दिष्ट तृतीय 'अवहार' पद का भी प्रक्षेप कर सकता था । परन्तु वह उसका प्रक्षेप न करके चकार से संग्रह करता है।
२–पाणिनि के 'प्रासुयुवपिरपित्रपिचमश्च" सूत्र के विषय में १५ महाभाष्य में वार्तिक पढ़ा है-लपिदभिभ्यां च । काशिकाकार ने
'पासुयुवपिरपिलपित्रपिचमश्च सूत्रपाठ माना है, और 'दाभ्यम्' प्रयोग की सिद्धि चकार में दर्शाई हैं। यदि सूत्रपाठ में 'लपि' का प्रक्षेप काशिकाकार ने किया, तो 'दभि' का क्यों नहीं किया ? अतः
'दाभ्यम' प्रयोग की सिद्धि के लिये सूत्रपाठ में 'दभि' का पाठ न २० करके चकार से संग्रह करना इस बात का ज्ञापक है कि इस प्रकार
के प्रक्षेप काशिकाकार के नहीं हैं। __३–लाक्षारोचनाद्वक् सूत्र पर वार्तिक है-ठकप्रकरणे शकलकर्दमाभ्यामुपसंख्यानम् । काशिकाकार ने लाक्षारोचनाशकलकर्द
माट्ठ" सूत्र मान कर लिखा है- 'शकलकर्दमाभ्यामणपोष्यते २५ १. महाभाष्य-प्रदीप ३३३३१२१॥
२. पदमञ्जरी १२३।२६; ३३३३१२२, ४।१।१६६; ६।१११००॥ ३. दीक्षित, शब्दकौस्तुभ ४।४।१७, पृष्ठ २०७। ४. अष्टा ३३।१२२॥ ५. अ० ३।३।१२॥
६. काशिका ३३।१२२॥ ७. अष्टा० ३।१।१२६॥ ८. महाभाष्य ३३१११२४॥ ६. काशिका ३।१।१२६॥
१०. अष्टा० ४.२॥२॥ ११. काशिका ४।२।।
१२. काशिका ४।२।२॥