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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन
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और मत्स्य २५ ४, ५ के अनुसार शौनक ने शतानीक को ययातिचरित सुनाया था। वायु पुराण १।१२, १४, २३ के अनुसार अधिसीम कृष्ण के राज्यकाल में कुरुक्षेत्र में नैमिषारण्य के ऋषियों द्वारा किये गये दीर्घसत्र में सर्वशास्त्रविशारद गृहपति शौनक विद्यमान था ।' ऋक्प्रातिशाख्य के प्राचीन वृत्तिकार विष्णुमित्र ने शास्त्रावतार ५ विषयक एक प्राचीन श्लोक उद्धृत किया है । वह लिखता है --
तस्मादादौ शास्त्रावतार उच्यते-
शौनको गृहपति नैमिषीयैस्तु दीक्षितैः । दीक्षा चोदितः प्राह स तु द्वादशाहिके ॥ इति शास्त्रावतारं स्मरन्ति ।
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इन प्रमाणों से विदित होता है कि गृहपति शौनक दीर्घायु था । वह न्यून से न्यून ३०० वर्ष प्रवश्य जीवित रहा था । अतः शौनक का काल सामान्यतया भारतयुद्ध से लेकर महाराज प्रधिसीम कृष्ण के काल तक मानना चाहिये । ऋक्प्रातिशाख्य की रचना भारतयुद्ध के लगभग १०० वर्ष पश्चात् अर्थात् ३००० विक्रम पूर्व हुई थी । १५ ऋप्रातिशाख्य में स्मृति व्यांडि भी इसी काल का व्यक्ति है । व्याडि पाणिनि का मामा था, यह हम पूर्व कह चुके हैं।' प्रतः पाणिनि का समय स्थूलतया विक्रम से २६०० वर्ष प्राचीन है ।
यास्क का काल - महाभारत शान्तिपर्व ० ३४२ श्लोक ७२, ७३ में यास्क का उल्लेख मिलता है । वह इस प्रकार है
यास्को मामृषिरत्र्यग्रो नैकयज्ञेषु गीतवान् । स्तुत्वा मां शिपिविष्टेति यास्क ऋषिरुदधीः ।।
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निरुक्त १३।१२ से विदित होता है कि यास्क के काल में ऋषियों का उच्छेद होना प्रारम्भ हो गया था। पुराणों के मतानुसार ऋषियों · ने अन्तिम दीर्घसत्र महाराज अधिसीम कृष्ण के राज्यकाल में किये २५ थे । भारतयुद्ध के अनन्तर शनैः शनैः ऋषियों का उच्छेद आरम्भ
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१. अधिसीमकृष्णे विक्रान्ते राजन्येऽनुपत्विषि । धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे दीर्घ पत्रे तु ईजिरे । तस्मिन् सत्रे गृहपतिः सर्वशास्त्रविशारदः ।
२. पूर्व पृष्ठ १९५-९६ ॥
३. मनुष्या वा ऋषिषूत्क्रामत्सु देवानब्रुवन् को न ऋषिभविष्यतीति । ३० ४. वायु पुराण १। १२-१४ ।। ६६ । २५७-२५६ ।।