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पाणिनि और उसका शब्दानुशासन २२७ सूत्र से होता है। यह कथन सर्वथा अयुक्त हैं । प्राचीन सूत्रग्रन्थों की रचनाशैली के अनुसार यह वचन पाणिनीय ही प्रतीत होता है। महाभाष्य के प्रारम्भ में भगवान पतञ्जलि ने लिखा है
अथेति शब्दोऽधिकारार्थः प्रयुज्यते । शब्दानुशासनं नाम शास्त्रमधिकृतं वेदितव्यम् । ___ इस वाक्य में 'प्रयुज्यते' क्रिया का कर्ता यदि पाणिनि माना जाय, तब तो इसकी उत्तरवाक्य से संगति ठीक लगती है । अन्यथा 'प्रयुज्यते' क्रिया का कर्ता पतञ्जलि होगा, और 'अधिकृतम्' का पाणिनि । क्योंकि शास्त्र का रचयिता पाणिनि ही है । विभिन्न कर्ता मानने पर यहां एकवाक्यता नहीं बनती।
अब हम 'प्रथ शब्दानुशासनम्' सूत्र के पाणिनीय होने में प्राचीन प्रमाण उपस्थित करते हैं___१. अष्टाध्यायी के कई हस्तलेखों का प्रारम्भ इसी सूत्र से होता
___२. काशिका और भाषावृत्ति में अन्य सूत्रों के सदृश इस की भी १५ व्याख्या की है, अर्थात् उन्होंने पाणिनीय ग्रन्थ का प्रारम्भ यहीं से माना है।
३. भाषावृत्ति का व्याख्याता सृष्टिधराचार्य लिखता है
व्याकरणशास्त्रमारभमाणो भगवान् पाणिनिमुनिः प्रयोजननामनी व्याचिख्यासुः प्रतिजानीते-अथ शब्दानुशासनमिति ।। २० । अर्थात्-व्याकरणशास्त्र का प्रारम्भ करते हुए भगवान् पाणिनि ने शास्त्र का प्रयोजन और नाम बताने के लिये 'अथ शब्दानुशासनम्' सूत्र रचा है।
१. स्वामी दयानन्द सरस्वती के संग्रह में सं० १६६२ की लिखी पुस्तक । यह इस समय श्रीमती परोकारिणी सभा अजमेर के संग्रह में है। २५ दयानन्द एंग्लो वैदिक कालेज लाहौर के लालचन्द पुस्तकालय की एक लिखित पुस्तक । सं० १९४४ विक्रमी में प्रो० वोटलिंक द्वारा मुद्रित अष्टाध्यायी । देखो, प्रो० रघुवीर एम० ए० द्वारा सम्पादित स्वामी दयानन्द सरस्वती विरचित अष्टाध्यायी-भाष्य, भाग १, पृष्ठ १ ।
२. भाषावृत्त्यर्थविवृत्ति के प्रारम्भ में। ,