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पाणिनीय अष्टाध्यायी में स्मृत प्राचार्य
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है ।' अष्टाध्यायी से अतिरिक्त इस प्राचार्य का कहीं उल्लेख नहीं मिलता । अतः इसके विषय में हम इससे अधिक कुछ नहीं जानते ।
१० – स्फोटायन - औदुम्बरायण ( २९५० वि० पूर्व )
आचार्य स्फोटान का नाम पाणिनीय अष्टाध्यायी में एक स्थान पर उद्धृत है। इस के अतिरिक्त इस का कहीं उल्लेख नहीं मिलता ।
परिचय
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पदमञ्जरीकार हरदत्त काशिका ६।१।१२३ की व्याख्या में लिखता है ।
स्फोटोsयनं परायणं यस्य स स्फोटायनः, स्फोटप्रतिपादनपरो वैयाकरणाचार्यः । ये त्वौकारं पठन्ति ते नडादिषु श्रश्वादिषु वा (स्फोटशब्दस्य ) पाठं मन्यन्ते ।”
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इस व्याख्या के अनुसार प्रथम पक्ष में यह प्राचार्य वैयाकरणों के महत्त्वपूर्ण स्फोट तत्त्व का उपज्ञाता था । अत एव वह वैयाकरण - निकाय में स्फोटायन नाम से प्रसिद्ध हुआ । इस का वास्तविक नाम अब ज्ञात हो चुका है वह है प्रौदुम्बरायण । अतः यह पक्ष चिन्त्य है । द्वितीय पक्ष (स्फोटायन पाठ) में इसके पूर्वज का नाम स्फोट था । स्फोट या स्फोटायन का उल्लेख हमें किसी प्राचीन ग्रन्थ में नहीं मिला।
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प्राचार्य हेमचन्द्र अपने अभिधानचिन्तामणि कोश लिखता है - स्फोटायने तु कक्षीवान् । * इसी प्रकार केशव भी नानार्थार्ण - वसंक्षेप में – 'स्फोटायनस्तु कक्षीवान् ।" लिखता है । इन उद्धरणों से २५ इतना व्यक्त होता है कि स्फोटायन कक्षीवान् का नाम था । क्या यहां कक्षीवान् पद से उशिक्-पुत्र कक्षीवान् अभिप्रेत है ?
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१. गिरेश्च सेनकस्य । श्रष्टा० ५|४|११२ ||
२. अवड स्फोटायनस्य । अष्टा० ६|१|१२३ ॥
३. पदमञ्जरी भाग २, पृष्ठ ४८४ । ४. पृष्ठ ३४० ।
५. पृष्ठ ८३, लोक १३६ ॥
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