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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
प्रकार इन्द्र कौशिक बना । मै० सं० ४।६८ तथा काठक संहिता २८ । ३ के अनुसार इन्द्र ने वृत्र का वध करके महेन्द्र नाम प्राप्त किया ।
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इन्द्र की मन्त्रिपरिषद् - कौटिल्य अर्थशास्त्र १११५ के अनुसार इन्द्र की मन्त्रिपरिषद् में एक सहस्र ऋषि थे । इसी कारण वह सहस्राक्ष कहाता था । इन्द्र के सहस्रभागरूप पौराणिक कथा का यही मूल है ।
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ब्राह्मण से क्षत्रिय - इन्द्र जन्म से ब्राह्मण था, कर्म से क्षत्रिय बन गया ।"
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दीर्घजीवी - इन्द्र बहुत दीर्घजीवी था । उसने केवल अध्यात्मज्ञान के लिये १०१ वर्ष ब्रह्मचर्य का पालन किया । तैत्तिरीय ब्राह्मण ३|१०|११ में लिखा है कि इन्द्र ने अपने प्रिय शिष्य भरद्वाज को तृतीय पुरुषायुष की समाप्ति पर वेद की अनन्तता का उपदेश किया था । * तदनुसार इन्द्र न्यूनातिन्यून ६००-७०० वर्ष अवश्य जीवित १५ रहा होगा । चरक चिकित्सा स्थान प्र १ में इन्द्रोक्त कई ऐसे रसायनों का उल्लेख है जिन के सेवन से एक सहस्र वर्ष की आयु होती है । इन रसायनों का सेवन करके इन्द्र स्वयं भी दीर्घायु हुआ और अपने प्रिय शिष्य भरद्वाज को भी दीर्घायुष्य प्राप्त कराया ।
काल
इन्द्र का निश्चित काल निर्णय करना कठिन है । भारतीय प्राचीन वाङ्मय में जो वर्णन मिलता है उससे ज्ञात होता है कि यह इन्द्र
१. पूर्व पृष्ठ ८८ टि०७ ।
२. इन्द्रो वै धृत्रमहन् सोऽन्यान् देवान् प्रत्यमन्यत । स महेन्द्रोऽभवत् । मै० सं० । इन्द्रो वै वृत्रं हत्वा स महेन्द्रोऽभवत् । का० सं० । तुलना करो -
२५ इन्द्रो वृत्रवधेनैव महेन्द्रः समपद्यत । महा० शान्ति० १५ । १५ कुम्भ० सं० ॥ ३. इन्द्रस्य हि मन्त्रिपरिषद् ऋषीणां सहस्रम् । तस्मादिमं द्वयक्षं
सहस्राक्षमाहुः ।
४. इन्द्रो वै ब्राह्मणः पुत्रः कर्मणा क्षत्रियोऽभवत् ॥ महा० शान्ति० २२।११ कुम्भ० सं० ॥ ५. भरद्वाजो ह त्रीभिरायुभिर्ब्रह्मचर्यमुवास । तं जीणि स्थविरं शयनरिन्द्र उपव्रज्योवाच । भरद्वाज ! यत्ते चतुर्थमायुर्दद्याम......।
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