________________ 56 ] बृहत्संग्रहणीरत्न हिन्दी . ..... [ गाथा 5-7 -व्यन्तरनिकायके देवोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थितिका यन्त्र Gc निकायोंके नाम / दक्षिणेन्द्रोंका .:. उत्कृष्ट-आयुष्य | उत्तरेन्द्रोंका :. उत्कृष्ट-आयुष्य 1/ पिशाच नि० || कालेन्द्रका | पल्योपम 9 महाकालेन्द्रका 1 पल्योपम 2 भूत नि० 2 स्वरूपेन्द्रका 10 प्रतिरूपेन्द्रका 3/ यक्ष नि० 3/ पूर्णभद्रका 11 मणिभद्रेन्द्रका 4/ राक्षस नि० 4 भीमेन्द्रका 12 महाभीमेन्द्रका | किन्नर नि० किन्नरेन्द्रका |13 किंपुरुषेन्द्रका | किंपुरुष नि० 6/ सत्पुरुषेन्द्रका 14 महापुरुषेन्द्रका 7| महोरग नि० |7 अतिकायेन्द्रका |15| महाकायेन्द्रका 8 गन्धर्व नि० 8 गीतरतीन्द्रका | ,,. 16 गीतयशेन्द्रका इस यन्त्रमें यद्यपि व्यन्तरेन्द्रोंका आयुष्य कहा है, तो भी उस निकायके विमानवासी देवोंका भी उत्कृष्ट आयुष्य उपर्युक्त रीतिसे समझ लें / -ज्योतिषी निकायके देवोंकी उत्कृष्ट आयुष्यस्थितिज्योतिषी शब्दका तात्पर्य क्या है ? द्योतनं ज्योतिः, तदेषामस्तीति ज्योतिष्काः / ज्योति अर्थात् प्रकाश, वह प्रकाश जिनका हो अर्थात् जो प्रकाश करनेवाले हों वे ज्योतिषी विमान और उनमें रहनेवाले वे ज्योतिष्कदेव कहलाते हैं। ___ ज्योतिषी देवता दो प्रकारके होते हैं, चर और स्थिर। उनमें ढाईद्वीपमें स्थित 1 उत्तरदिशावर्ती ध्रुवताराचक्रके अतिरिक्त ज्योतिषीके विमान मेरुकी प्रदक्षिणा करते रहनेसे "चर हैं अर्थात् जो घूमते ही रहनेके स्वभाववाले हैं वे चर और जो सदा एक ही स्थान पर रहें वे स्थिर / जो ढाईद्वीपके बाहरके हैं वे स्थिर ज्योतिषी कहलाते हैं अर्थात् सदाकालके लिए वे एक ही स्थान पर रहकर नियतक्षेत्रमें ही प्रकाश देनेवाले होते हैं, परंतु ढाईद्वीपमें रहे हुए चर चन्द्र-सूर्यादिके विमानोंकी तरह घूमते नहीं रहते हैं। अब वे सर्व (चर और स्थिर) ज्योतिषीमें विराजमान चन्द्रेन्द्र तथा चन्द्र-विमानवासी देवोंका उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपम और एक लाख वर्ष अधिक होता है, तथा सूर्येन्द्र और सूर्य-विमानवासी देवोंका उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपम और एक हजार वर्ष अधिक होता है। ग्रहोंके अधिपतिका तथा ग्रह-विमानवासी देवोंका उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपमका होता है। नक्षत्रके 89. चरन्तीति चराः-जो चरे-घूमा करे उनको चर कहते हैं। 90. तिष्ठन्ति तच्छीलानि स्थिराणि /