________________ पुद्गलपरावर्तका स्वरूप गाथा 5-7 [ 55 वंतरयाण जहन्नं, दस-वास-सहस्स-पलियमुक्कोसं / 1 . देवीणं पलिअद्धं, पलियं अहियं ससि-खीणं // 5 // लक्खेण सहस्सेण य, वासाण गहाण पलिय मेएसि / ठिइ अद्धं देवीणं, कमेण नक्खत्त-ताराणं // 6 // पलिअद्धं चउभागो, चउ-अडभागाहिंगाउ देवीणं / चउजुअले चउभागो, जहन्नमडभाग पंचमए // 7 // गाथा-व्यंतर देवों तथा देवियोंका जघन्य आयुष्य दस हजार वर्ष प्रमाण है और व्यंतरदेवोंका उत्कृष्ट आयुष्य पल्योपम प्रमाण है, व्यंतरदेवोंकी देवीका. उत्कृष्ट आयुष्य अर्ध-पल्योपम जितना है। चन्द्रका एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम और सूर्यका एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम प्रमाण उत्कृष्ट आयुष्य है / ग्रहोंका उत्कृष्ट आयुष्यं प्रमाण एक पल्योपम है। साथ ही चन्द्र, सूर्य और ग्रहों की देवियोंका उनसे आधा है। नक्षत्र और तारेका अनुक्रमसे, आधा पल्योपम तथा पल्योपमका चौथा भाग प्रमाण उत्कृष्ट आयुष्य है और उन दोनोंकी देवियोंका अनुक्रमसे कुछ अधिक पल्योपमका चौथा भाग, कुछ अधिक पल्योपमका आठवाँ भाग उत्कृष्ट आयुष्य है। साथ ही चार युगलके विषयमें जघन्य आयुष्य पल्योपमका चौथा भाग है और पांचवें युगलमें जघन्य आयुष्यका प्रमाण पल्योपमका आठवाँ भाग है // 5-6-7 // विशेषार्थ-व्यंतर निकायके देवों तथा उनकी देवियोंका जघन्य आयुष्य भवनपतिनिकायके समान दस हजार वर्षका होता है, जब कि उत्कृष्ट आयुष्य एक पल्योपमका होता है। और उन्हीं व्यंतरदेवों की देवियोंका उत्कृष्ट-आयुष्य “आधे पल्योपमका है। .. प्रश्न-व्यंतरदेवों तथा देवियोंकी जघन्य तथा उत्कृष्ट-आयुष्य स्थिति तो कही लेकिन मध्यम स्थिति कितनी समझें ? . * उत्तर-जघन्य स्थिति जो दस हजार वर्षकी कही गई है अतः एक समयाधिकसे प्रारंभ करके [ एक पल्योपमप्रमाण ] उत्कृष्ट-आयुष्य संपूर्ण न हो तब तक यथायोग्य जो बीचकी स्थिति हो उसे मध्यम स्थिति जाने / जहाँ जहाँ मध्यम स्थिति समझनी हों वहाँ यह स्पष्टीकरण समझ लें। 88. 'श्री ही धृति ' आदि देवियोंको कोई व्यन्तरनिकायकी मानते हैं, किन्तु वैसा मानना उचित नहीं, क्योंकि उन देवियोंका आयुष्य एक पल्योपमप्रमाण-होनेसे उन देवियोंको व्यन्तरनिकायकी न मानकर भवनपतिनिकायक मानें यही उचित है; क्योंकि व्यन्तरकी देवियोंका उत्कृष्ट आयुष्य भी आधे-पल्योपमका है /