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सुषमा कुलश्रेष्ठ
'शीते सुखोष्णसर्वाङ्गी ग्रीष्मे या सुखशीतला । भर्तृभक्ता च या नारी सा भवेद् वरवर्णिनी ॥
और फिर 'तमु काङ्क्षायाम्' धातु से 'उत्तमा' निष्पन्न भी तो होता है । उत्तमस्त्रीसहायाः के सम्बन्ध में महिमसिंहगणि का कथन है 'अत्र उत्तमपदस्यायमभिप्रायः उत्तमा उत्तमकुलप्रसूता परिणीता या स्त्री सैव सहाया संभोगावस्थायां द्वितीया एषां ते तथा ।'
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यक्ष लोग अपनी संगीतनिपुणा उत्तम स्त्रियों के सान्निध्य में मधुपान कर रहे हैं, साथ में पुष्करवादन का भी आनन्द ले रहे हैं । पानगोष्ठी तथा संगीतगोष्ठी के प्रचुर उल्लेख साहित्य में उपलब्ध हैं यहाँ मुख्यतः पानगोष्ठी वर्णित है किन्तु मधुपान के समय वहाँ वाय संगीत भी चल रहा है, आनन्द वृद्धि के लिए । यहाँ केवल पुष्करवादन का उल्लेख है किन्तु कल्पना की जा सकती है कि वहाँ गान और नृत्य भी चल रहा होगा और उस गान हो रहा होगा और फिर पानगोष्ठी भी चल रही होगी । । ऐसा ही मत भरतमल्लिक ने प्रस्तुत किया है—
और नृत्य के अनुरूप पुष्करों का वादन यह अर्थ ' शनकैः' से ध्वनित होता है
'यस्यामलकायां यक्षा उत्तमस्त्रीसहाया प्रशस्तवनिताद्वितीयाः सन्तः हर्म्यस्थलानि सौधादिस्थानानि एत्य प्राप्य तव गम्भीरध्वनिवि ध्वनिर्येषां तेषु पुष्करेषु मृदङ्गपरेषु शनकैर्मन्द गाननृत्यानुकूलं यथा स्यात्तथा आहतेषु ताडितेषु सत्सु मधु मयम् आसेवन्ते पिबन्ति । + + + शनैरित्यनेन सङ्गीतानुगतम् इदमिति सूचितम् । शनकैः क्षणं मधु पीयते क्षणं मृदङ्गा वाद्यन्ते इत्यर्थः ।
यक्षगण मधुपान तथा संगीत दोनों का रसास्वाद एक साथ कर रहे हैं जो उनके मन्दीभूत काम को उत्तेजित करने में सहायक
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'मधुपानं मृदङ्गानां वादनं चन्द्ररश्मयः ।
प्रासादशिखर रम्यं पुनरुत्तेजयेत् स्मरम् ||' इति
इति रन्तिः ।
आज आधुनिक परिवेश में भी प्रसिद्ध restaurants में जहाँ पान-गोष्ठियाँ चलती हैं, वहाँ संगीत भी सतत मन्द्र ध्वनि में चलता रहता है विशेषतः वाद्य संगीत ।
शनकै: के सम्बन्ध में सारोद्धारिणी में उल्लेख है ङ्गवात् पानगोष्ठयां कठोरवादित्रं नोपयुज्यते इति भावः । '
- 'कथं शनकैः मन्द मन्दम् । शृंगारा
प्रस्तुत पद्य इस बात का भी सूचक है कि अलका के यक्ष दम्पति सदा सुखी हैं अन्यथा पानगोष्ठी तथा संगीतगोष्ठी का आयोजन सम्भव नहीं ।
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