Book Title: Sambodhi 1982 Vol 11
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 492
________________ १२७ पद्मसुन्दरसूरिविरचित त्वं बुद्धस्त्वं स्वयंबुद्धस्त्वं सिद्धः पुरुषोत्तमः । सूक्ष्मा निरञ्जनेोऽव्यक्ता महनीयो महानपि ॥२५॥ अणीयांश्च गरीयांश्च स्थवीयानुत्तमो जिनः । अनुत्तरोऽनश्वरस्त्वं स्थास्नुभूष्णुर्भवान्तकः ॥२६।। ब्रह्म ब्रह्मविदां ध्येयः शान्तस्त्वं तारकः शिवः । आप्तः पारगतोऽपारश्चिद्रूपोऽनन्तदर्शनः ॥२७॥ निर्मदस्त्वं हि निर्मायो निर्माता निर्ममः स्वराट् । निर्द्वन्द्वो वीतदम्भस्त्वं निष्कलो निर्मलो जयी ।।२८॥ वीतरागोऽनन्तवीर्योऽनन्तज्ञानविलोचनः । निष्कलको निर्विकारो निराबाधेो निरामयः ।।२।। त्वमेव परमज्योतिश्चिदानन्दमयः स्वयम् । नाम्नामष्टोत्तरशतं नीत्वा स्वस्मृतिगोचरम् ॥३०॥ संस्तौमि त्वां जगत्स्तुत्यं श्रीमत्पार्श्वजिनेश्वरम् । वामेयं महिमाऽमेयमश्वसेननृपानजम् ॥३१॥ नमस्तेऽनन्तसौख्यायाऽनन्तज्ञानात्मने नमः । नमोऽनन्तदृशेऽनन्तबीयांय भवते नमः ॥३२।। — (२५) आप बुद्ध हैं, स्वयंबुद्ध हैं, पुरुषोत्तम हैं, सूक्ष्म हैं, निरंजन हैं, अव्यक्त हैं, महनीय हैं एवं महान् हैं । (२६) आप अणीयान् हैं, गरीयान् हैं, स्थवीयान् हैं, उत्तम हैं, जिन हैं, अनुत्तर हैं, अनश्वर हैं, स्थास्नु हैं, भूष्णु हैं एवं भवान्तक हैं । (२७) आप ब्रह्म हैं, ब्रह्मविदांध्येय हैं, शान्त हैं, तारक हैं, शिव हैं, आप्त हैं, पारगत हैं, अपार हैं, चिद्रूप हैं एवं अनन्तदर्शन हैं । (२८) आप निर्मद हैं, निर्माय हैं, निर्मोह हैं, निर्मम हैं, स्वराट् हैं, निईन्द्व हैं, वीतदम्भ हैं, निष्फल हैं, निर्मल हैं, जयी हैं। (२९) आप वीतराग हैं, अनन्तवीर्य हैं, अनन्तज्ञानविलोचन हैं, निष्कलङ्क हैं, निर्विकार हैं, निराबाध हैं एवं निरामय हैं । (३०--३१) आप स्वयं परमज्योति हैं एवं चिदानन्दमय हैं । आपके एक सौ आठ नामों का स्मरण करके मैं जगत के स्तुतियोग्य तथा अमेयमहिमावाले वामा-अश्वसेन के पुत्र आप श्रीमत्पार्श्वजिनेश्वर की स्तुति कर रहा हूँ। (३२) अनन्तसुखयुक्त, अनन्तज्ञानस्वरूप, अनन्तदर्शनस्वरूप तथा अनन्तवीर्य आपको नमस्कार है । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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