Book Title: Sambodhi 1982 Vol 11
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 498
________________ पद्मसुन्दरसुरिविरचित १३३ इति श्रीमत्परापरपरमेष्ठिपदारविन्दमकरन्दसुन्दररसास्वादसम्प्रीणितभव्यभव्ये पं० श्रीपद्ममेरुविनेय पं० पदमसुन्दरविरचिते श्रीपार्श्वनाथमहाकव्ये श्रीपार्श्वनिर्वाणमङ्गल नाम सप्तमः सर्गः ॥ इति श्रीमान् परमपरमेष्ठी के चरणकमलरूपी मकरन्द के सुन्दर रस के स्वाद से भव्यजनों को प्रसन्न करने वाले, प० श्रीपदममेरु के शिष्य पं० श्रीपद्मसुन्दरकवि द्वारा रचित श्रीपार्श्वनाथमहाकाव्य में "श्रीपाश्र्गनिर्वाणमंगल" नामक सातवाँ (अन्तिम) सर्ग समाप्त हुआ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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