Book Title: Sambodhi 1982 Vol 11
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 473
________________ श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य कादम्बिनी तदा श्यामाञ्जनभूधरसन्निभा । व्यानशे विद्युदत्युग्रज्वालाप्रज्वलिताम्बरा ॥४९।। नालक्ष्यत तदा रात्रिन दिवा न दिवाकरः । बभूव धारासम्पातैः वृष्टिर्मुशलमांसलैः ।।५।। गर्जितैः स्फुर्जथुध्वानैः ब्रह्माण्डं स्फोटयन्निव । भापयंस्तडिदुल्लासैवेर्षति स्म घनाघनः ॥५१।। आसप्तरात्रादासारैझञ्झामारुतभीषणैः । जलाप्लुता मही कृन्स्ना ब्यभादेकार्णवा तदा ॥५२॥ आनासाग्रात् पयःपूरः श्रीपार्श्वस्याऽऽगमद् यदा । धरणेन्द्रोऽवधेर्ज्ञात्वा तदाऽऽगात् कम्पितासनः ॥५३।। प्रभोः शिरसि नागेद्रः स्वफणामण्डपं व्यधात् । तन्महिष्यग्रतस्तौर्यत्रिकं विदधती वभौ ॥५४॥ वर्षन्तमवधेत्विा नागेन्द्रो मेघमालिनम् । क्रुद्धः साक्षेपमित्यूचे भूयादजननिस्तव ॥५५॥ आः पाप ! स्वामिनो वारिधारा हारायतेतराम् । तवैव दुस्तरं वारि भववारिनिधेरभूत् ॥५६॥ (४९) श्याम अञ्जन पर्वत के सदृश मेघमाला बिजली की उग्र ज्वालाओं से आकाश को जलाती हुई फैल गई । (५०) उस समय न रात्रि का पता लगता था, न दिन का और न सूर्य का । मूसल जैसी पुष्ट धाराओं से वर्षा होने लगी । (५१) बादलों की गड़गड़ाहट की आवाजों की गर्जनाओं से मानो ब्रह्माण्ड को फोड़ता हुआ और बिजली की चमक से उसको प्रज्वलित करता हुआ घनघोर मेघ वरस रहा था । (५२) सात रात लगातार मूसलाधार वर्षा होने से तथा भीषण झंझावात से भयंकर बनी सम्पूर्ण पृथ्वी जल से पूर्ण एक समुद्र की तरह हो गई। (५३) जब जल का पूर (प्रवाह) पार्श्व की नासिका के अग्रभाग तक आ गया तब कम्पित आसनवाला धरणेन्द्र अवधिज्ञान द्वारा जानकर (वहाँ) आया। (५४) नागेन्द्र (धरणेन्द्र) ने प्रभु पार्श्व के मस्तक पर अपनी फणाओं का मण्डप बना दिया । उस धरणेन्द्र की पत्नी प्रभु के आगे वाद्य गान और नृत्य करती हुई शोभित हुई। (५५) अवधिज्ञान से मेघमाली को वृष्टि करता देखकर नागेन्द्र ने ऋद्ध होकर भाक्षेपपूर्वक कहा-'लानत हो तुम पर । (५६) अरे पापी ! स्वामी के लिए यह जलधारा हार बन गई (गले तक पहुँच गई) और तुम्हारे लिए (यही जलधारा) संसारसागर का दुस्तर जल बन गयी है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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