Book Title: Sambodhi 1982 Vol 11
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 480
________________ पद्मसुन्दरसूरिविरचित जीवादीनां पदार्थानां प्रमाणाभ्यां नयैरपि । भवेदधिगमो यद्वा निर्देशादाधिपत्यतः ॥९४॥ स्यात् साधनादधिष्ठानात् स्थितेरथ विधानतः । सतसंख्याक्षेत्रसंस्पर्शकालभावान्तरैरपि ॥९५।। भागेनाल्पबहुत्वेन तेषामधिगमो भवेत् । जीवस्य तूपशमिकः क्षायिको मिश्रनामकः ।।९६।। स्वभाव उदयोत्थश्च भावः स्यात् पारिणामिकः । इत्यादिभिर्गुणैर्जीवो लक्ष्यते तस्य तु द्विधा ।।९७।। उपयोगो भवेद् ज्ञानदर्शनद्रयभेदतः । ज्ञानमष्टतयं च स्याद् दर्शनं तु चतुष्टयम् ।।९८।। भेदग्रहत्वात् साकारं ज्ञानं सामान्यमावतः । प्रतिभासादनाकारं दर्शनं तद् विदुर्बुधाः ॥९९।। क्षेत्रज्ञः पुरुषः सोऽयं पुमानात्मा सनातनः । जीवः प्राणी स्वयंभूश्च ब्रह्म सिद्धो निरञ्जनः ।।१०।। द्रव्यार्थिकनयान्नित्यः पर्यायार्थनयादयम् । अनित्यः स्यादुभाभ्यां तु नित्यानित्यात्मकं जगत् ।।१०१।। (९४-९६अब ) जीव आदि तत्वों का ज्ञान प्रमाण और नय से होता है । इन जीव आदि तत्त्वों का विचार निर्देश, आधिपत्य, साधन, अधिष्ठान, स्थिति और विधान इन दृष्टिओं से भी होता है । इन जीवादि तत्त्वों का ज्ञान और विचार सत्, संख्या, क्षेत्र; स्पर्शन, काल, भाव, अन्तर और अल्पबहुत्व इन दृष्टियों से भी होता है । (९६कड-९८) जीव के (पाँच) भाव हैं - औपशमिक, क्षायिक, मिश्र, औदयिक और पारिणामिक । इन सब गुणों से जीव जाना जाता है । जीव का उपयोग दो प्रकार का है-ज्ञानोपयोग और दर्शनोपयोग । ज्ञान के आठ प्रकार हैं तथा दर्शन के चार प्रकार हैं। (९९) विशेष को ग्रहण करने के कारण ज्ञान को साकार कहा गया है और सामान्यमात्र को ग्रहण करने के कारण दर्शन को विद्वानों ने अनाकार समझा है । (१००) वह क्षेत्रज्ञ है, पुरुष है, पुमान् है, सनातन आत्मा है, जीव है, प्राणी है, स्वयंभू है, ब्रह्म है और निरजन सिद्ध है। (१०१) द्रव्यार्थिक नय से जीव नित्य है; पर्यायार्थिक नय से जीव अनित्य है, और दोनों नय से जीव और जगत् नित्यानित्य है । . Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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