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मारुतिनन्दन प्रसाद तिवारी
निचले भाग में है । यहां निर्वस्त्र और मुड़े हुए मस्तक तथा लम्बे कानों वाले जैन साधु को एक स्त्री के साथ आलिंगन-मुद्रा में दिखाया गया है । जैन साधु के दाहिने हाथ में मयूरपीच्छिका है और उसका बायां हाथ आलिंगन-मुद्रा में वाम पाव की स्त्री आकति के कन्धों से होता हुआ उसके स्तन का स्पर्श कर रहा है । स्त्री के बायें हाथ में पद्म है और दाहिना हाथ आलिंगन-मुद्रा में है ।
कामकला सम्बन्धी सर्वाधिक प्रखर मूर्तियाँ नाडलाई (पाली, राजस्थान) के शांतिनाथ मन्दिर पर हैं । म दिर के अधिष्ठान पर काम सम्बन्धी लगभग ५० युगल मूर्तियाँ उकेरी हैं । इन रति युगलों में सामान्य आकृतियों के अतिरिक्त जैन साधुओं की भी आकृतियाँ हैं। ये युगल चुम्बन, प्रगाढ़ आलिंगन, तथा संभोग की विभिन्न मुद्राओं में हैं। जन साधओं की आकृतियाँ मुद्दे हुए सिर तथा लम्बे कानों वाली हैं । कुछ दृश्यों में जैन साधुओं के इस कृत्य पर अन्य आकृतियों को आश्चर्य व्यक्त करते हुए भी दिखाया गया है । . .
कुभारिया में ११ वी से १३ वीं शती ई. के मध्य के पाँच श्वेतांबर जैन मन्दिर हैं जो शांतिनाथ, महावीर, पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और संभवनाथ को समर्पित हैं । इस स्थल पर काम सम्बन्धी अंकन का केवल एक उदाहरण मिला है । यह मूर्ति नेमिनाथ मन्दिर (१२ वी शती ई.) के ५ पूर्वी नरथर में है (चित्र ३) । दृश्य में दो पुरुषों द्वारा एक स्त्री के साथ काम प्रकरण का अंकन हैं । स्त्री को आगे की ओर झुके हुए और दोनों हाथों के सहारे अपना नितंब भाग ऊपर उठाये दिखाया गया है। समीप की पुरुष आकृति स्त्री की योनि का चुम्बन ले रही है, जबकि स्त्री उस पुरुष का लिंग मुख में लिये है। स्त्री के सिर के पास एक दूसरी पुरुष आकृत खड़ी है जो उसके स्तनों का स्पर्श कर रही है। सभी आकृतियाँ निर्वस्त्र हैं । कुभारिया के जैन मंदिर की यह मूर्ति संभवतः समीप के कुभेश्वर (शिव) मन्दिर (ल० ११ वी शती ई०) से प्रभावित है, जिस पर काम सम्बन्धी मूर्तियों का प्रचुरता और प्रखरता के साथ शिल्पांकन हुआ है ।
तारगा (महेसाणा, गुजरात) के अजितनाथ मन्दिर पर काम सम्बन्धी ६ मूर्तियां हैं । सभी मूर्तियाँ नरथर (उत्तर और पश्चिम) में हैं । इनमें स्त्री-पुरुष दोनों ही पूरी तरह नग्न हैं । दो उदाहरणों में सिर के बल उलया खड़ी स्त्री के साथ एक पुरुष संभोग कर रहा है । एक उदाहरण में पुरुष-स्त्री का कपोल पकड़े हुए है जबकि स्त्रो को पुरुष का लिंग पकड़े दिखाया गया है । एक उदाहरण में एक स्त्री आकृति आसन पर लेटी है और उसके दोनों पैर परुष के कन्धों पर रखे है । पुरुष स्त्री के साथ संभोग की स्थिति में है । समीप ही एक स्थानक आकृति को शरमाते हुए भी दिखाया गया है । बायीं ओर सेविकाओं की नखा झलते हुए कुछ मर्तियाँ भी बनी हैं । एक अन्य उदाहरण में शयिका पर लेटी एक स्त्री आकृति के दोनों ओर दो पुरुष आकृतियाँ रति क्रिया की मुद्रा में आकारित हैं । यह एक स्त्री के साथ दो पुरुषों के सहवास का शिल्पांकन है । छठी मर्ति में पुरुष को स्त्री का हाथ पकड़कर अपने लिंग के पास ले जाते हुए दिखाया गया है । समीप की दो नारी आकृतियाँ शर्म से मुँह ढके हैं।
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