Book Title: Sambodhi 1982 Vol 11
Author(s): Dalsukh Malvania, H C Bhayani, Nagin J Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 447
________________ S श्रीपार्श्वनाथचरितमहाकाव्य क्रमो यदीयौ किल मञ्जुसिञ्जितैः स्वनूपुरात्थैरिव जेतुमुद्यतौ । सुगन्धलुब्धालिकुलस्वनाकुलं . प्रवालशोणं स्थलपङ्कजदयम् ॥११॥ सदैव यानासनसङ्गतौ गतौ निगूढगुल्फाविति सन्धिसंहतो । स्फुटं तदहीकृतपार्णिसङ्ग्रहो ___ सविग्रहौ तामरसैजिगीषुताम् ॥१२॥ तदीयजङ्घ द्वयर्द प्तिनिर्जिता वनं गता सा कदली तपस्यति । चिराय वातातपशीतकर्षणै-. रधः शिरा नामस्खण्डितव्रता ॥१३॥ अनन्यसाधारणदीप्तिसुन्दरौ । परस्परेणोपमितौ रराजतुः । ध्रुवं तदूरू विजितेन्द्रवारण प्रचण्डशुण्डायतदण्डविभ्रमौ ॥१४॥ कटिस्तदीया किल दुर्गभूमिका सुमेखलाशालारिष्कृता कृता । मनोभवेन प्रभुणा खसंश्रया जगज्जनोपप्लवकारिणा ध्रुवम् ॥१५॥ (११) उस कन्या के पदक्रम अपने नूपुर से उठी हुई सुन्दर ध्वनि से, सुगन्ध से कृष्ट भ्रमरकुल की आवाज से पूरित और मूंगे के समान लाल दो स्थलकमल को जीतने के लिए उद्यत थे । (१२) यान (चलना) और आसन (बैटना) से युक्त, नहीं दिखाई देते हों ऐसे घुटनों वाले, समुचित सन्धिबन्धवाले, पुष्ट एड़ो वाले, सुन्दर आकृति काले उसके दोनों पैर यान और आसन रूपी उपायों वाले, अगोचर गुल्फ वाले, सन्धि से ऐक्य वाले, पाणि द्वारा सुरक्षासम्पन्न और युद्ध करते कमलों को जीतने की इच्छा करते थे। (१३) उसकी दोनों जाँघों की कान्ति से निर्जित वह कदलीवृक्ष जंगल में चिरकाल से वायु, धूप, शीत आदि कष्ट से अखण्डितव्रत होकर मानों नीचे सिर किये हुए तप कर रहा है। (१४) अत्यन्त असाधारण दीप्ति से सुन्दर, प पर एक दूसरे की उपमा वाली उसकी दोनों जाँघों ने निश्चितरूप से ऐरावत हाथी की दण्ड के समान लम्बी प्रचण्ड शाखा की विभ्र गति को परास्त किया था । (१५) सुन्दर कन्दोरे के हीरों से अलंकृत तथा योनि के आश्रयस्थानरूप उसकी कमर खाई और कोट से परिष्कृत तथा आकाश को धारण करने वाली (गगनचुम्बो), जगत् के लोगों को सताने वाले कामदेव प्रभु द्वारा बनाई गई (मानो) दुर्गभूमि है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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