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पद्मसुन्दरसूरिविरचित :
१०३, इतोऽमुतश्च धावन्तो लोकाः . कलकलाकुलाः । समुज्झितान्यकर्तव्याः प्रणेमुस्तं :- कृतादराः ॥९॥ स एष भगवान् पार्श्वः साक्षाज्जङ्गमभूधरः । यदृष्ट्या फलिते नेत्र यच्छुत्या सफले श्रुती ॥१०॥ . यश्चिन्तितोऽपि चित्तेन जन्मिनां कर्मसंक्षयम् । कुरुते स्मरणान्नाम्नो यस्य पूतो भवेज्जनः ॥११।। . सोऽयं घनाञ्जनश्यामस्स्यक्तस्मः सनातनः ।। निष्कामो विचरत्येष दिष्ट्या दृश्यः स एव न: ॥१२॥ एवमुपिजला लोकाः . पार्श्वदर्शनलालसाः । अहंपविकया । जग्मुर्विदधाना मिथःकथाम् ॥१३ । स्तनं धयन्तं काऽपि स्त्री त्यक्त्वाऽधावत् स्तनंधयम् । प्रसाधितैकपादागात् . काचिद् गलदलतका ॥१४॥ खलु भुक्तेति काऽप्याह पश्यन्ती भगवन्मुखम् । काऽपि मज्जनसामग्रीमवमत्य गतान्तिकम् ॥१५॥ केऽपि पूजा वितन्वन्तः . पौराः कौतुकिनः परे ।
गतानुगतिकाश्चान्ये , पार्श्व द्रष्टुमुपागमन् ॥१६॥ की इच्छा से, इधर-उधर दौड़ते हुए, शोरगुल मचाते हुए, अपने अन्य कार्यों को छोड़ते हुए, भादरपूर्वक उस पार्श्व , को प्रणाम करने लगे। (१०) 'वह भगवान् पार्व साक्षात् चलते-फिरते पर्वत हैं (अर्थात् जङ्गम होने पर भी अचल हैं), इसके कारण: ही उन्हें देखने से दोनों नेत्र सफल हो गये तथा उन्हें सुनने से दोनों कान भी तृप्त हो गये । (११) मन से उनका चिन्तन, करने पर वे जन्मधारियों के कर्म का क्षय कर देते हैं, उनके नामस्मरण मात्र से मनुष्य पवित्रात्मा हो. जाता है । (१२) गाद काचल के समान काले, आसक्ति. से रहित, सनातन, निष्काम ऐसे वे (पाव) विचरण कर रहे हैं। हमारा सौभाग्य है कि उनका ही दर्शन हमें सुलभ हुआ।' (१३) इस प्रकार - सोचते हड़बड़ाहट के साथ पार्श्व के दर्शनों के इच्छुक व्यक्ति 'मैं पहला हूँ, मैं पहला हूँ, ऐसे वचन बोलते हुए और आपस में चर्चा करते हुए गये । (१४) कोई महिला अपने स्तनपान करते हए बच्चे को ही छोड़कर दौड़ी । कोई एक ही पैर में महवर लगाये हुए दौड़ने लगी और कोई गलते हुए अलते वाली स्त्री दौड़ रही थी । (१५) किसो स्त्री ने भगवान् के मुख को देखकर 'तृप्त हो गई' ऐसा कहा । कोई महिला स्नान सामग्री को भी पटककर (पार्श्व के ) पास पहुँची । (१६) कोई नागरिक पूजा करते हुए, कुछ दूसरे कौतुहलवश और अत्य दूसरे देखादेखो पार्श्व को देखने पहुंचे।
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