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लघु श्रीपालरास
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श्रीगच्छ खरतर पति प्रगट, जिनचन्द्रसूरी सूरीस । गणि शांतिहरख वाचक तणउ, कहइ जिनहरख मुसीस ॥७१॥ श्रा।
सतरइ बयालीसइ समई, वदि चैत्र तेरसि जाण । 2ए रास पाटणमां रच्यउ, सुणतां सदा कल्याण ॥७२॥
इति श्रीपाल नृप रास ।
1 सुरि सीस A 2 एस A 3 A प्रति में इस प्रकार लिपिकार-प्रशस्ति है-संवत् १०५१ वर्षे भहारक श्री विजयाणंदसरि शिष्य । पं. श्री चंद्रविजय गणी शिष्य लालविजय तम शिष्य मु. वृद्धविजय लिखीतं । मणि श्री न्यानविजय वाचनार्थ ॥ श्रीरस्तु कल्याणमस्तु ।।
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