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साध्वी श्री सुरेखा श्री
से कर दिया। इधर धवल श्रीपाल को समुद्र में गिराकर 'दगाबाज दना नमे' की भाँति कपटी जोर जोर से रोने चिल्लाने लगा। दोनों राजपुत्रियों को वज्रपात हुआ । धवल उनके पास सान्त्वना देने के लिए गया और कहने लगा-'तुम चिन्ता न करो, मैं तुम्हारा रक्षण करूँगा । तुम मुझे अपना सर्वेसर्वा स्वीकार कर लो ।' दोनों ने धवल के पापी मन को भांप लिया कि इस दुष्ट ने हमारे कारण ही पतिदेव को कष्ट में डाला है । पतिव्रता के शील के रक्षण हेतु चक्रेश्वरी देवी प्रकट हुई और धवल की अवगति की । धवल ने दोनों राजपुत्रियाँ की शरण ग्रही तब देवी ने उसे छोड़ा । दोनों के कण्ठों में पुष्पमाला आरोपित कर कहा 'कुदृष्टि से तुम्हारे पास आवेगा वह दृष्टिविहीन हो जावेगा एवं इस महीने के अंत में तुम दोनों पति-दर्शन कर लोगी ।'
इस प्रकार श्रीपाल को समुद्र में धक्का मारकर धवल ने दोनों पत्नियों के शील लूटने का प्रयत्न करने पर भी सफल न हो सका । धवल सेठ के जहाज भी कोंकण देश के किनारे पहुँचे और धवल भेंटनी लेकर राजा के पास गया । वहाँ श्रीपाल को देखकर आश्चर्यचकित हो गया । उसे जीवित देख अन्य कोई युक्ति से मारने का वह विचार करने लगा। डूब जाति के समूह को प्रलोभन दे श्रीपाल को निम्न जाति का सिद्ध करने का प्रयत्न किया पर अंत में पाप का घड़ा फूट गया । राजा द्वारा प्राणदंड दिया जाने पर श्रीपाल ने अपने आश्रयदाता कहकर छुड़वाया, पर धवल का हृदय, उसके विचार व आचार में कलुषितता थी । एक रात्रि में सप्तखंड के महल में जब श्रीपाल सुखपूर्वक सो रहा था तब धवलने एक पालतू गोह लाकर महल में डाली और रस्सी के सहारे हाथ में कटारी लेकर चढने लगा। किन्तु यकायक रस्सी बीच में ही टूट जाने से उसके पेट में कटार घुस गयी और उसके जीवन का करुण अंत हुआ ।
एक सार्थवाह के कहने से श्रीपाल कुंडलनगर की राजसुता को वीणा वादन में वामन के रूप में परास्त कर वरी । इस वीणावादन में नवपदाराधना से तुष्ट विमलेश्वर देव द्वारा प्रदत्त हार सहायक हुआ । पश्चात् कनकपुर में श्रीपाल ने विजयसेन राजा की पुत्री त्रैलोक्यसुदरी को कुबई का रूप बनाकर स्वयंवर में वरा । जिससे अन्य राजागग क्रोधित हुए । उनको पराक्रम दिखाकर परास्त किया ।
देवकीपाटन के राजा धरापाल की कन्या श्रृंगारसुदरी एवं उसकी पांचों सखियों को दोडापूर्ति कर जीत में वरमाला आरोपित करी । कोल्ला कपुरेश पुरंदर की सुता जयसुदरी का परिग्रहग राधावेध सावकर किया । तिल मुदरी का सर्व विष हरण कर विवाह किया । इस प्रकार परदेश में आठ सन्नारियों को प्राप्त कर खूब धन कमाकर एक बड़े सैन्यबल के साथ श्रीगल उज्जयनी पहुँचा । माता व मपणा को नगर बाहर सैन्य पड़ाव में श्रीपाल ले आया । मयगा ने पूछा कि तेरे पिता को कैसे बुलाया जाय ? कंधे पर कुल्हाडा और मुँह में तिनका लेकर प्रजापाल को बलाया, दूत को भेजकर । तब मयणा ने पिताश्री से निवेदन किया कि
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