Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 13
________________ मंगलसागरजी थे, उनसे भी प्रतिक्रमण आदि में आपके कई स्तवन-सज्भाय सुनते रहते थे। पर एक दिन उनके पास आनन्दकाव्य महोदधि का सातवाँ मौक्तिक देखा, जिसमें जैन साहित्य महारथी स्व० मोहनलाल दलीचन्द देसाई का "कविवर समयसुन्दर"। निबन्ध पढ़ने को मिला। इस ग्रन्थ में कविवर का चार प्रत्येकबुद्ध रास भी छपा था। देसाई के उक्त निबन्ध ने हमें एक नई प्रेरणा दी । विचार हुआ कि समयसुन्दर राजस्थान के एक बहुत प्रसिद्ध कवि हैं और बीकानेर की आचार्य खरतर शाखा का उपाश्रय तो समयसुन्दर जी के नाम से ही प्रसिद्ध है। अतः उनक सम्बन्ध में गुजरात के विद्वान ने इतने विस्तार से लिखा है तो राजस्थान में खोज करने पर तो बहुत नई सामग्री मिलेगी। बस, इसी आंतरिक प्रेरणा से हमारी शोध प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई। श्रीजिनकृपाचन्द्रसूरिजी के उपाश्रय में ही हमें आपकी अनेक रचनाएँ मिलीं, जिनमें से चौवीसी को तो हमने अपने 'पूजा संग्रह' के अन्त में सं० १९८५ ही में प्रकाशित करदी थी और बड़े उपाश्रय के ज्ञान-भंडार, जयचंदजी भंडार, श्रीपूज्यनी का संग्रह, यति चुन्नीलालजी भं० अनूप संस्कृत लाइब्रेरी और पाश्वचंद्रसूरि उपाश्रय भ०व खरतर आचार्य शाखा का भण्डार मुख्यतः इसी दृष्टि से देखने प्रारम्भ किये कि कविवर की अज्ञात रचनाओं का संग्रह और प्रकाशन किया जाय । ज्यों ज्यों इन संग्रहालयों की हस्तलिखित प्रतियां देखने लगे, त्यों त्यों कविवर को अनेक अज्ञात रचनाएं मिलने के साथ अन्य भी नई नई सुन्दर सामग्री देखने को मिली उससे हमारा उत्साह बढ़ता चला गया। सबसे पहले महावीर मण्डल के पुस्तकालय में हमें एक ऐसा गुटका मिला जिसमें कविवर की छोटी छोटी पचासों रचनाएँ संगृहीत थीं। साथ ही विनयचन्द्र आदि सुकवियों की मधुर यह गुजराती साहित्य परिषद में पहले पढ़ागया फिर जैन साहित्य संशोधक भा० २०३-४ में छपा था। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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