Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 11
________________ (=) इनके द्वारा रचित साहित्य की नामावली देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि वह कितना महत्त्व पूर्ण है । उसमें रास, चौपाई आदि कई ऐसे काव्य रूप मिलते हैं, जो अपभ्रंश-काल से उस समय तक बनते चले आ रहे थे। इनके प्रकाशित होने पर उन छूटी हुई कड़ियों का पता लग सकता है, जो अब तक अज्ञात हैं । नाहटाजी ने जिस ग्रन्थ का संपादन किया है वह इनकी कवित्वशक्ति की प्रौढ़ता का उदाहरण है । इसकी भाषा में भावों को अभिव्यक्त करने की अद्भुत क्षमता है । कवि का ज्ञान परिसर बहुत ही विस्तृत है, इसलिये वह किसी भी वर्ण्य विषय को बिना प्रयास के सहज ही संभाल लेता है । इस पुस्तक के छन्दों और रागों से तत्कालीन ब्रजभाषा में प्रचलित पढ़-शैली के अध्ययन में सहायता मिलेगी । नाथ-पंथी योगियों और निगुणियों सन्तों की भाषा और शैली की तुलना की जा सकती है । जान पड़ता है कि इस ग्रन्थ का लेखक निर्गुण भाव से भजन करने वाले सन्तों की साखी तथा सबदी शैली से पूर्णतः परिचित है और सूरदास, तुलसीदास जैसे सगुण भाव से भजन करने वाले भक्त कवियों की पदावली से भी प्रभावित है। कई पदों में सूरदास और तुलसीदास की शैलियों का रस मिलता है । यह ग्रन्थ सन् ई० की सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी की भाषा और शैली के अध्ययन में बहुत सहायक सिद्ध होगा । नादाजी ने इस ग्रन्थ का संपादन करके हिन्दी - साहित्य के अध्येताओं के सामने बहुत अच्छी सामग्री प्रस्तुत की है। मैं हृदय से उनके प्रयत्न का अभिनन्दन करता हूँ । भगवान से मेरी प्रार्थना है कि नाहटाजी को दीर्घायुष्य और पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करें; जिससे वे अनेक महत्त्व - पूर्ण ग्रन्थ-रत्नों का उद्धार करते रहें । तथास्तु | हजारीप्रसाद द्विवेदी काशी ११-३-५६ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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