Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 10
________________ प्रन्थ सदा के लिये लुप्त हो गए। फिर भी इस निष्ठा पूर्वक समाचरित अन्धभक्ति का ही सुफल है कि इन ग्रन्थ-भाण्डारों के ग्रन्थ बिना हेर-फेर के शताब्दियों से ज्यों के त्यों सुरक्षित रह गए हैं। इन प्रन्थ-भाण्डारों को पूर्ण परीक्षा अभी नहीं हुई है। परन्तु जिन लोगों को भी इन महत्त्वपूर्ण भाण्डारों को देखने का सुअवसर मिला है; वे कुछ न कुछ महत्त्व-पूर्ण ग्रन्थ अवश्य (प्रकाश में) ला सके हैं । नाहटाजी को कई भाण्डारों के देखने का अवसर मिला है और उन्होंने अनेक ग्रन्थ-रत्नों का उद्धार भी किया है। समयसुन्दर कृति 'कुसुमाञ्जलि' भी ऐसी ही खोज का सुफन है। यह प्रन्थ भाषा, छन्द, शैली और ऐतिहासिक सामग्री की दृष्टि से बहुत महत्व-पूर्ण है। इसमें सन् १६८७ ई० के अकाल का बड़ा ही जीवन्त वर्णन है । यह अकाल गोसाई तुलसीदास के गोलोकवास के सिर्फ सात वर्ष बाद हुआ था। कवि ने इसका बड़ा ही हृदय-द्रावक और जीवन्त वर्णन किया है । इस ग्रन्थकार के बारे में नाहटाजी ने नागरी-प्राचारिणी पत्रिका के सं० २००६ के प्रथम अंक में जो लिखा था, उससे जान पड़ता है कि इस ग्रन्थ कार की जन्म-भूमि मारवाड़ प्रांत का सांचौर स्थान है। ये पोरवाद वंश के रत्न थे और इनका जन्मकाल संभवतः सं० १६२० वि० है। अकबर के आमंत्रण पर ये लाहौर में सम्राट से मिलने गए थे । इनके लिखे संस्कृत ग्रन्थों की संख्या पच्चीस है और भाषा में लिखे ग्रन्थों की संख्या भी तेईस है। इन्होंने 'सात छत्तीसियों' की भी रचना की थी। कई अन्य रचनाएं भी इनके नाम पर चलतो है पर नाहटाजी को उनकी प्रामाणिकता पर संदेह है। सं० १७०२ में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी (महावीर जन्म जयन्ती) के दिन अहमदाबाद में इन्होंने अनशन आराधना पूर्वक शरीर त्याग किया। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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