Book Title: Samaysundar Kruti Kusumanjali
Author(s): Agarchand Nahta, Bhanvarlal Nahta
Publisher: Nahta Brothers Calcutta

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Page 8
________________ भूमिका मेरे मित्र श्री अगरचन्दजी नाहटा प्राचीन ग्रन्थों के अन्वेषक की अपेक्षा उद्धारक अधिक हैं, क्योंकि वे केवल पुस्तकों के भाण्डारों में गोते लगाकर सिर्फ पुरानी अज्ञात अपरिचित पुस्तकों और प्रन्थकारों का पता ही नहीं लगाते हैं बल्कि पता लगाई हुई पुस्तक और लेखकों के अतिरिक्त वक्तव्य विषय का ऐतिहासिक वृत्त एवं सांस्कृतिक महत्त्व बताकर साहित्य प्रेमी जनता को उनके प्रति उत्सुक बनाते हैं और समय समय पर महत्व-पूर्ण ग्रन्थों का संपादन करके उन्हें सर्व-जन-सुलभ भी बनाते हैं। नाहटाजी ने अब तक सैकड़ों अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तकों का संधान बताया है और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सैंकड़ों लेख लिखकर विस्मृत ग्रन्थों तथा ग्रन्थकारों की ओर सहृदयों का ध्यान आकृष्ट किया है । नाहटाजी जैसे परिश्रमी और बहुश्रुत विद्वान है वैसे ही उदार और निस्पृह भी। उन्होंने अपने महत्व-पूर्ण लेखों को दोनों हाथ लुटाया है। छोटी-छोटी अपरिचित पत्रिकाएँ भी उनकी कृपा से कभी वञ्चित नहीं रहती हैं। इस अवीर दानी स्वाभाव का फन यह हुआ है कि उनके लेख इतने बिखर गए हैं कि साहित्य के विद्यार्थी के लिए एकत्र करके पढ़ना और लाभ उठाना लगभग असम्भव हो गया है। यदि ये सभी लेख पुस्तक रूप में एकत्र संगृहीत हो जाँय तो बहुत ही अच्छा हो । अस्तु। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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