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वक्तव्य
महोपाध्याय कविवर समयसुन्दर की लघु रचनाओं का यह संग्रह प्रकाशित करते हुए २८ वर्ष पूर्व की मधुर स्मृतियें उभर
आती हैं। वैसे तो कविवर की रचनाओं का रसास्वाद हमें अपने बाल्यकाल में ही मिल गया था, क्योंकि राजस्थान में, विशेषतः बीकानेर में आपके रचित शत्रु जय रास, ज्ञान पञ्चमी और एकादशी के स्तवन, वीर स्तवन ( वीर सुणो मोरी वीनती), शत्रु अय
आलोयणास्तवन ( कृपानाथ मुझ वीनती अवधार ) और कई अन्य स्तवन और सज्झायें जैन जनता के हृदयहार बन रही हैं। इनमें से कई रचनायें तो किसी गच्छ और सम्प्रदाय के भेदभाव बिना समस्त श्वेताम्बर जैन समाज में खूब प्रसिद्ध हैं। हमारे पिताजी प्रातःकाल की सामायिक में आपके रचित शत्रुञ्जय रास, गौतमगीत, नाकोड़ा स्तवन आदि नित्य पाठ किया करते थे और माताजी एवं अन्य परिवार वालों से भी आपकी रचनाओं का मधुर गुन्जारव हमने बाल्यकाल में सुना है । पर सं० १९८४ को माघ शु०५ को खरतरगच्छ के बड़े प्रभावशाली और गीतार्थ प्राचार्य श्रीजिनकृपाचंद्रसूरिजी हमारे पिताश्री और बाबाजी आदि के अनुरोध से बीकानेर पधारे। वह विशेष रूप से उल्लेखनीय है । हमारी कोटड़ी में ही उनके विराजने से हम भी व्याख्यान, प्रतिक्रमण आदि का लाभ उठाने लगे। इससे पूर्व भी कलकत्ता में सरवसुखजी नाहटा के साथ प्रतिदिन सामायिक में गाते हुए शत्रु जय रास आदि तो हमने कण्ठस्थ कर लिये थे और ज्ञानपञ्चमी-एकादशी के स्तवन आदि भी समय समय पर बोलने और सुनाने के कारण अभ्यस्त हो गये थे। प्राचार्यश्री के साथ उपाध्याय सुखसागरजी, विनयी राजसागरजी और लघु शिष्य
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