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आदिगुरु ऋषभदेव :
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आदिदेव
प्रथम
भूख- भूख का गूंज रहा कितना कर्मयोग का तब तूने
दारुण
दिया
बोध
पुण्यकर्म
तेरा
तू
अतः
धन्वा मुमन
है ऋषभ जिनेश्वर, ज्ञान- ज्योति का तू प्रकाश उतारा तूने, धरती
तमसावृत
इस
उभय
था,
एक दृष्टि थो
चिरन्तन
सबका
अन्दर,
वह जिसके सुरभित हो जन-जन का हित। यह सन्देश आज भी, धरा स्वर्ग तक
अभिनन्दित ।।
सब थे तेरे,
नग्नदेह
हिमगिरि-शिखरों
ध्यान
धरा
सोया अन्तर जिनवर
था,
भीषण
ही,
जग मंगलकर ॥
समरस
वेदों तक म, गुंजित गाथा तव यश
पर,
अविचल
पाया निज में
जागा,
दिनकर |
निज
भौतिक वैभव दिया, दिया फिर,
अक्षय
आध्यात्मिक दान का परम देव तू, भूलेंगे
न
तुझे
पर ॥
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स्वर ।
की ।
की ॥
तूने ।
तूने ॥
वैभव ।
भव भव ।।
३
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