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कुछ तत्त्व-दर्शन जीवन के तेज को समाप्त करते हुए प्रतीत होते हैं ।
संघर्ष की शक्ति एवम् कर्म के उत्स को मिटाने का भ्रम पैदा करते हैं ।
कुछ अंश में यह सत्य तो है पर वस्तुतः नासमझ लोगों के द्वारा रहस्यपूर्ण गूढ़ गूढ़ चिन्तन का दुरुपयोग ही देखा गया है।
नियतिवाद के सम्बन्ध में कुछ ऐसी ही टिप्पणी की जा सकती है ।
पर, दुरुपयोग के भय से सत्य का उजागर होना रोका नहीं जा सकता।
"ण एवम् भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा । "
जो नियत है, उसको अतीत, अनागत या वर्तमान में अनियत नहीं किया जा सकता ।
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