Book Title: Sagar Nauka aur Navik
Author(s): Amarmuni
Publisher: Veerayatan

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Page 274
________________ २४० Jain Education International समग्र मानव जाति के लिए पूज्य गुरुदेव का दिव्य संदेश आज के समाज, राष्ट्र एवं मत- पन्थों के क्षुद्र स्वार्थों की आपाधापी में आणविक शस्त्रास्त्रों की प्रलयंकर अन्धी दौड़ में, यदि किसी एक को भी जीना है, तो सब को जीने दो । सब के जीने में ही एक का जीना है । केवल मनुष्य 'को ही नहीं, मनुष्य के साथ जीने दो विश्व सृष्टि के पशु-पक्षी - जगत् को और जीने की प्रक्रिया में आगे बढ़कर जीने दो पृथ्वी को, जल को, वृक्षों को, हवा को और यहाँ तक कि तेजस् को भी । जीने दो व्यक्ति और परिवार को, जीने दो समाज और राष्ट्र को, और जीने दो धर्मों की मंगलमयी जनकल्याणी परंपराओं को। "परस्परं भावयन्तः " का ही एकमात्र मार्ग है जीने का । 'जीने दो' का अर्थ ही है--बचाना। अतः बचाओ, यदि बचना है । जिस किसी को भी मिटा रहे हो, तुम खुद मिट रहे हो। जिस किसी को भी बचा रहे हो, तुम खुद बच रहे हो । महाश्रमण भगवान् महावीर का प्रस्तुत सन्दर्भ में यह धर्मसूत्र सदैव स्मरणीय है -- 'एगे आया ।' उपध्यम अमर मुनि For Private Personal Use Only सागर, नौका और नाविक www.jainelibrary.org

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