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दीक्षा
दीक्षा असत् से सत की ओर, तमस् से आलोक की ओर मृत्यु से अमरत्व की ओर अग्रसर होनेवाली एक अखण्ड ज्योतिर्मय जीवन यात्रा!
दीक्षा बाहर से अन्दर में सिमट आने की एक अद्भत आध्यात्मिक साधना है, तो अन्दर से बाहर फैलने की एक सामाजिक कमनीय कला भी है ! आध्यात्मिकता और सामाजिकता का सुन्दर समन्वय है इस पथ पर!
दीक्षा अशुभ का बहिष्कार है, शुभ का संस्कार है, शुद्धत्व का स्वीकार है! 'स्व' की 'स्व' से 'स्व' को सहज स्वीकृति ही तो दीक्षा है !
दीक्षा स्वयं पर स्वयं का शासन स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण, सद्गुरु मात्र साक्षी है, पथ का भोमिया है, शेष सब-कुछ शिष्य पर! जगाता गुरु है, कर्ता-धर्ता शिष्य है।
श्रद्धा का घृत, ज्ञान की बाती, कर्म की ज्योति, यही है दीक्षा का मंगल दीप, जिसकी स्वणिम आभा से हो जाता तमसावृत अन्तर, ज्योतिर्मय अक्षय अजरामर !
दीक्षा : दूसरा जन्म
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