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अपना ईश्वर तू ही खुद है,
जाग, जाग रे मानव जाग। जागा शिव है, सोया शव है,
त्याग, त्याग तम-निद्रा त्याग।।
काम ।
अपना भाग्य हाथ में तेरे,
भला-बुरा जो भी है कर सकता है, रोक न कोई,
रावण बन अथवा वन
राम ।
प्राणिमात्र में परमेश्वर का,
सुप्त अनन्तानन्त प्रकाश। दीन-हीन मानव में जागृत,
तू ने किया आत्म-विश्वास ।। देव-लोक में नहीं सुधा है,
सुधा मिलेगी धरती पर। मधुर भाव के सुधा पान से
तृप्ति मिलेगी जीवन-भर ।। कटुता का विष जो फैलाये,
वह मानव है अधम असुर। देव वही है मधुर भाव से
पूरित जिसका अन्तर उर।।
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सागर, नौका और नाविक
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