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का हल करके पूर्ण शान्ति की राह दिखाई। अतः वह नाभिनन्दन ऋषभदेव प्रभु हमारे मन को पवित्र करेंपुनातु चेतो मम नाभिनन्दनो। तत्कालीन मानवजाति का चिन्तन सीमा-बद्ध क्षुद्र चिन्तन था, व्यक्ति अपने ही दैहिक घेरे में आबद्ध हो गया था। अपने सुख-दुःख तक ही उसका चिन्तन शेष रह गया था। व्यक्ति-व्यक्ति बिखरा हुआ था, वह माला का रूप नहीं ले पा रहा था। उन बिखरे हुए फूलों को माला का भव्य रूप देने वाला; परिवार, समाज, राष्ट्र एवं विश्व के रूप में सम्पूर्ण मानव-जाति एक है, का दिव्य उद्घोष करने वाला और मानवजाति ही क्यों, जगत् के सभी जीव एवं समस्त प्राणी एक हैं का, मंगलपाठ सिखाने वाला आदि महा प्रभु ऋषभदेव हमारे अन्तर्मन को पवित्र करें। मन की पवित्रता में ही जीवन की, कर्म की पवित्रता है। "नाऽन्यः पन्था विद्यतेऽयनाय।"
"आदि पुरुष, आदीश जिन, आदि सूविधि कर्तार। धर्म-धुरंधर परम गुरु, नमो आदि अवतार ॥"
सागर, नौका और नाविक
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