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________________ आदिगुरु ऋषभदेव : Jain Education International आदिदेव प्रथम भूख- भूख का गूंज रहा कितना कर्मयोग का तब तूने दारुण दिया बोध पुण्यकर्म तेरा तू अतः धन्वा मुमन है ऋषभ जिनेश्वर, ज्ञान- ज्योति का तू प्रकाश उतारा तूने, धरती तमसावृत इस उभय था, एक दृष्टि थो चिरन्तन सबका अन्दर, वह जिसके सुरभित हो जन-जन का हित। यह सन्देश आज भी, धरा स्वर्ग तक अभिनन्दित ।। सब थे तेरे, नग्नदेह हिमगिरि-शिखरों ध्यान धरा सोया अन्तर जिनवर था, भीषण ही, जग मंगलकर ॥ समरस वेदों तक म, गुंजित गाथा तव यश पर, अविचल पाया निज में जागा, दिनकर | निज भौतिक वैभव दिया, दिया फिर, अक्षय आध्यात्मिक दान का परम देव तू, भूलेंगे न तुझे पर ॥ For Private & Personal Use Only स्वर । की । की ॥ तूने । तूने ॥ वैभव । भव भव ।। ३ www.jainelibrary.org.
SR No.001329
Book TitleSagar Nauka aur Navik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2000
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size7 MB
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