Book Title: Pramukh Jainacharyo ka Sanskrit Kavyashastro me Yogadan
Author(s): Rashmi Pant
Publisher: Ilahabad University
View full book text
________________
पृष्ठ संख्या
ध्वनि के आधार पर काव्य-भेद जैनाचार्यों के अनुसार ध्वनि-भेद विवेचन काव्य-हेतु काव्य-प्रयोजन
71 - 78 79 - 97 98 - 112 112 - 123
तृतीय अध्याय
जैनाचार्यों की दृष्टि में रस-स्वरूप विवेचन
रस-स्वरूप रस-भेद
124 - 139 140 - 146
146 - 157
161 - 163
भंगार रस हास्य रस करूण रत रौद्र रत वीर रस भयानक रस वीभत्स रस
170 - 171
172 - 173 173 - 177
अदभुत रस शान्त रस स्थायिभाव विभाव
177 - 183 183 - 184 185 - 188
अनुभाव व्यभिचारिभाव सात्त्विक भाव
188 - 198 198 - 200
रसाभास व भावाभास
200-203

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 410