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स्थिति में गंभीरता से विचार करें तथा उनके संकल्पों, भावनाओं एवं प्रवर्तित कार्यों को पूर्णत्व की ओर ले जाते हुये उनकी स्मृति को और भी अनेक मांगलिक कार्यों के प्रवर्तन के द्वारा अक्षुण्ण रखें – ऐसी भावना है।
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'यमाय नमो अस्तु मृत्यवे' – (ऋग्वेद, 10/165/4)
इंदु जी की अध्यात्मदृष्टि
एक बार महाराष्ट्र प्रान्त से दिगम्बर जैन महिलाओं का एक समूह कुन्दकुन्द भारती में दर्शनार्थ आया। उसकी कुछ महिलायें अच्छी विदुषी भी थीं तथा उनकी कुछ तात्त्विक जिज्ञासायें भी थीं। पूज्य आचार्यश्री से चर्चा - समाधान के उपरान्त वे आदरणीया धर्मानुरागी इन्दु जी (सहधर्मिणी साहू अशोक जैन जी) से भी मिलीं, जो कि संयोगवश उस समय कुन्दकुन्द भारती में आयीं हुईं थीं। चूँकि इन्दु जी अच्छी अध्यात्मरुचि - सम्पन्न जिज्ञासुवृत्ति की स्वाध्यायी महिला हैं तथा 'समयसार' के सूक्ष्म अध्ययन में आपकी विशेष रुचि / प्रवृत्ति रहती है । अत: इंदु जी ने उन महिलाओं से पूछा कि “क्या आप दुःखी हैं?" तो वे बोलीं कि "हाँ! हम दु:खी हैं। संसार में अनेकविध दुःख हमें भोगने पड़ते हैं।” यह सुनकर इंदु जी ने स्मित हास्यपूर्वक उत्तर दिया कि "आप दुःखी हैं यह कथन 'व्यवहार' का है। संयोगी दृष्टि से हमें ऐसा लगता है। यदि हम शुद्ध - बुद्ध आत्मस्वभाव की दृष्टि से देखें, तो आत्मा में दुःख है ही नहीं । "
इंदु जी का यह समाधान सुनकर वे महिलायें दंग रह गयीं तथा उनकी सूक्ष्म आध्यात्मिक दृष्टि को नमन करके आगे चलीं गयीं ।
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स्वाध्याय
'सज्झाय' – ( बोधपाहुड, 44, पृ0208)
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वाचना- —शिष्याणां व्युत्पत्तिनिमित्तं स्वाध्यायध्यानयुक्ताः। स्वाध्याय प्रञ्चप्रकार:, शास्त्रार्थकथनं, पृच्छना-अनुयोगकरणं, अनुप्रेक्षा – पठितस्य व्याकृत्य च शास्त्रस्य पुनश्चेतसि चिंतनं', आम्नाय : –शुद्धपठनं, धर्मोपदेशः महापुराणादि-शास्त्रस्य मुनीनां श्रावकादीनामग्रतो व्याख्यानविधानम्।” – ( बोधपाहुड टीका )
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स्वायाय पाँच प्रकार का होता है— (1) वाचना, (2) पृच्छना, (3) अनुप्रेक्षा, (4) आम्नाय (5) धर्मोपदेश । शिष्यों की व्युत्पत्ति के लिये शास्त्र के अर्थ का कथन करना वाचना है। अज्ञात वस्तु को समझने के लिये अथवा ज्ञात वस्तु को दृढ़ करने के लिये प्रश्न पूछना पृच्छना है । पठित अथवा व्यासयात शास्त्र का चित्त में पुन: पुन: चिंतन करना अनुप्रेक्षा है। शुद्ध पाठ करना आम्नाय है और मुनियों तथा श्रावकों के आगे महापुराणादि शास्त्रों का व्याख्यान करना धर्मोपदेश है ।
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प्राकृतविद्या + अक्तूबर-दिसम्बर 198