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(पुस्तक-समीक्षा
मूलकर्ता
प्रकाशक
पुस्तक का नाम • पाहुडदोहा
- मुनि रामसिंह संपादक व अनुवादक - डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री संस्करण
- प्रथम संस्करण 1998, पक्की जिल्द, आकर्षण मद्रण - भारतीय ज्ञानपीठ, 18 इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड,
नई दिल्ली-110003 मूल्य
- 55 रुपये, पृष्ठ संख्या 260 भारतीय ज्ञानपीठ की प्रतिष्ठा महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों/कृतियों के स्तरीय प्रकाशन की रही है। इसी श्रृंखला में एक नवीनतम प्रकाशन आया है 'दोहापाहुड', जो ग्यारहवीं शताब्दी ई० के संत मुनि रामसिंह द्वारा विरचित उत्कृष्ट आध्यात्मिक रचना है।
इस कृति की सर्वप्रथम शोध स्वनामधन्य विद्वद्वर्य डॉ० हीरालाल जी जैन ने की थी, तथा उन्होंने इस पर गवेषणापूर्ण विशद प्रस्तावना, मूलानुगामी हिन्दी अनुवाद, उपलब्धपाठभेद एवं आवश्यक टिप्पणियों के साथ कारंजा से सन् 1933 में प्रकाशित कराया था। तदुपरान्त उन्हीं के संस्करण के आधार से कुछ न्यूनाधिक्य-सहित एक-दो स्थानों से किन्हीं सज्जनों ने अपने संपादकत्व में इसे प्रकाशित कराया, जो विशेष उल्लेखनीय भी नहीं हैं। ___ डॉ० हीरालाल जी ने इसके पाठ-सम्पादन व अनुवाद में व्यापक सावधानियाँ रखीं थीं, किंतु सीमित प्रतियों की उपलब्धता तथा अन्य कुछ कारणों से इस कार्य में अभी कई दृष्टियों से गुंजाइश प्रतीत होती थी। अब यह कृति कई दृष्टियों से परिमार्जित एवं पुष्ट होकर यथायोग्य नवीन कलेवर में विद्वद्वर्य डॉ० देवेन्द्र कुमार जी शास्त्री के द्वारा सम्पादित एवं अनूदित होकर इस संस्करण के रूप में प्रकाशित हुई है, जो निश्चितरूप से स्वागत-योग्य है।
इसकी प्रस्तावना' में विद्वान् सम्पादक ने ग्रन्थ के नामकरण, विषयवस्तु, ग्रंथकर्ता एवं प्रतियों का संक्षिप्त किंतु विद्वत्तापूर्ण परिचय दिया है; किंतु पूर्व-प्रकाशित संस्करणों के बारे में परिचय एवं उनके वैशिष्ट्य का उल्लेख भी यदि इसमें होता, तो इस संस्करण की नवीनता एवं विशेषता पाठकों को अति स्पष्ट हो जाती। फिर भी जो श्रम सम्पादक-विद्वान् ने किया है, वह अपने आप में स्वत: मुखरित है।
ग्रंथ के मूलपाठों के अधिकांश पाठान्तर 'पादटिप्पण' में प्रदत्त हैं, ताकि तुलनात्मक
प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98
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