Book Title: Prakrit Vidya 1998 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 106
________________ हैदराबाद में जैनविद्या-सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण राष्ट्रिय संगोष्ठी सम्पन्न "राज्यपाल डॉ० चक्रवर्ती रंगराजन ने जैनधर्म को भारत का प्राचीन धर्म बताते हुए कहा कि जैनधर्म ने न केवल भारतीय विचारधारा व दर्शनशास्त्र को प्रभावित किया है, अपितु भारत के कई प्राचीनतम धर्मों पर भी अपनी छाप छोड़ी है।" बिरला पुरातत्व एवं सांस्कृतिक शोध संस्थान, सालारजंग संग्रहालय एवं उस्मानिया विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आज उस्मानिया विश्वविद्यालय परिसर में जैनधर्म, कला, पुरातत्व, साहित्य एवं दर्शनशास्त्र पर आयोजित 3 दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए डॉ० रंगराजन ने उक्त उद्गार व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि "जैनधर्म 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर के नाम से जाना जाता है, परन्तु प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे तथा 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ थे। उन्होंने कहा कि महावीर एक ऐतिहासिक पुरुष हैं, जिनका वर्णन इतिहास में मिलता है। भगवान महावीर ने कोई नवीन धर्म की स्थापना नहीं की थी, अपितु धर्म को एक आधार व ढांचा प्रदान किया था।" ___ श्री रंगराजन ने कहा कि “भगवान् महावीर को महावीर इसलिए नहीं कहा जाता कि उन्होंने कई राज्यों को जीता और अपने राज्य का विस्तार किया, अपितु उन्होंने अपने आप पर विजय प्राप्त की थी। उन्हें इसलिए 'जिन' भी कहा जाता था अर्थात् 'विजेता'।" । राज्यपाल श्री रंगराजन ने आगे बोलते हुए कहा कि "विश्वास ही सभी धर्मों का सहारा बनता है। धर्म का कला एवं संस्कृति पर भी कड़ा प्रभाव पड़ता है और जैनधर्म के संबंध में भी यह कहा जा सकता है।" उन्होंने कहा कि “अन्य प्रकार कला जैसे मंदिर वास्तुकला, शिल्प आदि पर जैनधर्म का प्रभाव बहुत गहरा है। आन्ध्र प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर उनके शिलालेखों, वास्तुकला एवं साहित्य पर भी जैनधर्म की छाप है।" कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास और सभ्यता विभाग के प्रोफेसर बी०एन० मुखर्जी ने अपने सम्बोधन भाषण में कहा कि विश्व के महान धर्म एक निश्चित समयावधि में विकसित होते हैं, जिनमें जीवन के उद्देश्य, नैतिक मूल्य, अध्यात्म एवं दर्शनशास्त्र सम्मिलित होते हैं और जैनधर्म इन सबका समन्वय है। जैनधर्म का प्रभाव केवल भक्तों पर ही नहीं, अपितु प्रशासन, कला, साहित्य, विज्ञान एवं वैज्ञानिक विचारों पर भी पड़ा है। जैनधर्म के 24वें तीर्थंकर महावीर ने स्वयं आन्ध्र प्रदेश के उत्तरी क्षेत्र में अपनी शिक्षाओं का प्रचार किया है। श्री मुखर्जी ने जानकारी देते हुए बताया कि आन्ध्र प्रदेश में जैनधर्म ने कर्नाटक की ओर से प्रवेश किया। पूर्वी चालुक्य राजा कुबेर विष्णुवर्धन की रानी अयनामहादेवी ने बीजावाड़ा (विजयवाड़ा) के नडुम्बी बस्ती नामक ग्राम को जैन मंदिर निर्माण के लिए दान दे दिया था। आन्ध्र में जैनधर्म का विस्तार ईसा पूर्व प्रथम शताब्दी या उससे भी पहले हुआ था, परन्तु तीसरी व सातवीं शताब्दी में इसका पूर्ण प्रचार हुआ। राज्यपाल रंगराजन ने इस अवसर पर जैनधर्म, कला, पुरातत्व, साहित्य एवं दर्शनशास्त्र पर आधारित संस्मारिका का विमोचन किया। श्रीमती हरिप्रिया रंगराजन ने स्वागत भाषण दिया। उस्मानिया विश्वविद्यालय CC 104 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98

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