Book Title: Prakrit Vidya 1998 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 107
________________ के कुलपति वी० रामकिष्टय्या ने समारोह का संचालन किया। राष्ट्रीय ग्रामीण विकास संस्था की परामर्शदात्री वी० वेदकुमारी ने धन्यवाद दिया। इस संगोष्ठी में डॉ० सुदीप जैन ने दिग्विजयी जैन सम्राट् खारवेल के हाथीगुम्फा शिलालेख मे कतिपय अभिनव तथ्य' विषय पर शोध-आलेख प्रस्तुत किया। इसकी व्यापक सराहना हुई। सेमीनार के समापन सत्र में समागत विद्वानों एवं आयोजकों की ओर से जैन समाज के शिरोमणि व्यक्तित्व साहू अशोक जैन जी के बारे में उस्मानिया विश्वविद्यालय के कुलपति ने प्रभावी उल्लेख किया तथा विनम्र श्रद्धांजलि समर्पित की गयी। ** पत्राचार प्राकृत पाठ्यक्रम दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्रीमहावीरजी द्वारा संचालित अपभ्रंश साहित्य अकादमी से अब ‘पत्राचार प्राकृत सर्टिफिकेट पाठ्यक्रम' प्रारम्भ किया जा रहा है। सत्र 1 जुलाई 1999 से प्रारम्भ होगा। इसमें प्राकृत, संस्कृत, हिन्दी एवं अन्य भाषाओं/विषयों के प्राध्यापक, अपभ्रंश, प्राकृत शोधार्थी एवं संस्थानों में कार्यरत विद्वान् सम्मिलित हो सकेंगे। नियमावली एवं आवेदन-पत्र दिनांक मार्च से 15 मार्च, 1999 तक अकादमी कार्यालय, दिगम्बर जैन नसियाँ भट्टारकजी, सवाई रामसिंह रोड़, जयपुर-4 से प्राप्त करें। कार्यालय में आवेदन-पत्र पहुँचाने की अन्तिम तारीख 30 अप्रैल 1999 है। डॉ० कमलचन्द सोगाणी, जयपुर ** प्रो० (डॉ०) विद्यावती जैन 'डी०लिट' की उपाधि से विभूषित 'जैन महिलादर्श' की सम्पादिका प्रो० (डॉ०) विद्यावती जैन, आरा (धर्मपत्नी प्रो० राजाराम जैन) को बाबासाहेब अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार) की ओर से डी०लिट् की उपाधि से विभूषित किया गया है। श्रीमती जैन ने 'संत कवि देवीदास और उनके अद्यावधि अप्रकाशित हिन्दी साहित्य का समीक्षात्मक अध्ययन' विषय पर सन् 1997 में 609 पृष्ठीय उच्चस्तरीय मौलिक शोध-प्रबन्ध मूल्यांकन-हेतु प्रस्तुत किया था। ___ यह उल्लेखनीय है कि श्रीमती जैन, जैनविद्या के क्षेत्र में दुर्लभ अप्रकाशित पाण्डुलिपियों की खोज, सम्पादन, तुलनात्मक तथा विस्तृत समीक्षात्मक अध्ययन कर डी०लिट' की उपाधि प्राप्त करनेवाली सम्भवत: प्रथम विदुषी महिलारत्न हैं। बुन्देली के एकमात्र उत्तरमध्यकालीन हिन्दी जैनकवि देवीदास की 66 पाण्डुलिपियों पर सर्वप्रथम उच्चस्तरीय कार्य कर इन्होंने महारत हासिल की है और आगामी शोध-जगत् के लिए एक प्रशस्त मार्ग तैयार किया है। आपकी इस सफलता के लिए हार्दिक अभिनन्दन एवं भूरिश: बधाइयाँ । -डॉ० रमेशचन्द जैन, बिजनौर (उ०प्र०) ** कु० आरती जैन पी-एच०डी० उपाधि से अलंकृत जैन साहित्य के तत्त्वरसिक आत्मज्ञ विद्वान् पंडित सदासुखदास जी पर शोध-प्रबन्धहेतु डॉ० हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ने कुमारी आरती जैन, छिन्दवाड़ा (म०प्र०) को पी-एच०डी० की उपाधि से सम्मानित किया है। उनके शोध विषय जैन साहित्य के परिप्रेक्ष्य प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98 00105

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