Book Title: Prakrit Vidya 1998 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 127
________________ भाव सनातन और सार्वभौमिक है- भावों को केवल विभिन्न भाषाओं में ही अभिव्यक्त किया जाता है और हमारे भाषाई वैविध्य में जो एक उल्लेखनीय तथ्य है वह है- - अन्य भाषाओं से लाये गये शब्द और एक सहज तत्परता से इनका हमारी भाषाओं में घुल-मिल जाना, समाहित हो जाना । यदि किसी भी भाषा को कायम रहना है, फैलना है और फलना-फूलना है, तो व्यापक स्तर पर पारस्परिक व्यवहार, आदान-प्रदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है - अभी बहुत कुछ हासिल किया जाना है। ✩ भाषा की एक सांझी आत्मा है, इसे जीवन्त बनाये रखिये । ✰ नवभारत टाइम्स प्रकाशन- समूह की शुभकामनाओं सहित ✰✰✰

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