Book Title: Prakrit Vidya 1998 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 108
________________ में पंडित सदासुखदास जी कासलीवाल के व्यक्तित्व एवं कर्तव्य का अनुशीलन' उन्होंने डॉ० (श्रीमति) आशालता पाठक के निर्देशन में पूर्ण किया। अपने शोधकार्य के प्रसंग में क० आरती जैन ने कुन्दकुन्द भारती शोध संस्थान, नई दिल्ली से भी महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश एवं साहित्यिक सहयोग प्राप्त किया था। -अशोक जैन, छिन्दवाड़ा ** अहिंसा इण्टरनेशनल के वर्ष 1998 के पुरस्कार अहिंसा इण्टरनेशनल नई दिल्ली के वर्ष 1998 के लिए विभिन्न पुरस्कारों का विवरण निम्नानुसार है: 1. अहिंसा इण्टरनेशनल डिप्टीमल आदीश्वरलाल जैन साहित्य पुरस्कार (31,000/-रू०) डॉ० देवेन्द्र कुमार शास्त्री, नीमच वालों को प्रदान किया जाएगा। 2. अहिंसा इण्टर० भगवानदास शोभालाल जैन विशेष शाकाहार पुरस्कार (15,000/- रू०) डॉ० नेमीचन्द जैन, इन्दौर को प्रदान किया जाएगा। 3. अहिंसा इण्टरनेशनल भगवानदास शोभालाल जैन शाकाहार पुरस्कार (11,000/- रू०) सुरेश चन्द जैन, जबलपुर को प्रदान किया जाएगा। 4. अहिंसा इण्टरनेशनल रघुवीर सिंह जैन जीवरक्षा पुरस्कार (11,000/- रू०) मौहम्मद शफीक खान, सागर को प्रदान किया जाएगा। 5. अहिंसा इण्टरनेशनल गोल्डन जुबली फाउंडेशन पत्रकारिता पुरस्कार (5,100/- रू०) डॉ० नीलम जैन, सहारनपुर को प्रदान किया जाएगा। ये पुरस्कार शीघ्र ही दिल्ली में भव्य समारोहपूर्वक प्रदान किये जाएंगे। ___-सतीश कुमार जैन ** धर्मानुरागिणी श्रीमती ललिता दोशी दिवंगत समाजसेवा एवं राष्ट्र की उन्नति में समर्पित यशस्वी दोशी-परिवार की वयोवृद्ध-प्रमुखा धर्मानुरागिणी श्रीमती ललिता दोशी जी का दि० 23 फरवरी '99 को 83 वर्ष की अवस्था में धर्मध्यानपूर्वक देहावसान हो गया। धर्मप्राण श्रेष्ठिवर्य स्व० श्री लालचन्द हीराचन्द जी दोशी की सहधर्मिणी श्रीमती ललितादोशी जी सारे जीवन धार्मिक कार्यों में समर्पित रहीं, उन्होंने कुछ ही दिन पूर्व पूज्य श्री नेमिसागर जी मुनिराज को भक्तिपूर्वक आहारदान दिया तथा अन्य अनेकविध धर्मध्यान के कार्यों में लगी रहीं। सम्पूर्ण दोशी परिवार को पारस्परिक सौहार्द एवं एकता के सूत्र में पिरोकर रखने में आपका अनन्य योगदान रहा है। साथ ही सम्पूर्ण परिवार को धार्मिक संस्कार प्रदान करने में आपका ही प्रमुख श्रेय था। कुन्दकुन्द भारती एवं प्राकृतविद्या' से आपका विशेष वात्सल्य था। ऐसी भद्रपरिणामी, धर्मप्राण, उदारमना नारीरत्न को प्राकृतविद्या-परिवार की ओर से बोधिलाभ एवं सुगतिगमन की मंगलकामना के साथ विनम्र विनयांजलि अर्पित है। -संपादक ** 10106 प्राकृतविद्या अक्तूबर-दिसम्बर'98

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