Book Title: Prakrit Vidya 1998 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

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Page 82
________________ स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पानी छानने का विशेष महत्त्व है। क्योंकि बाहर ही नहीं, भीतर की भी शुद्धता अपेक्षित है, जो निजशुद्धात्म-स्वभाव में रहने से उपलब्ध होती है। बाहर की स्वस्थता मन और शरीर पर अवलम्बित है। दया के परिणाम से पर के प्राणों के संरक्षण के भाव से मन शुद्ध होता है और जीव-जन्तुओं के बचावपूर्वक पानी छानकर पीने से शरीर शुद्ध रहता है, व्यक्ति का शारीरिक स्वास्थ्य ठीक रहता है। परंपरित मान्यता के अनुसार जल की एक बूंद में इतने जीव आते हैं कि यदि वे कबूतर के बराबर होकर उड़ें, तो उनसे यह जम्बूद्वीप लबालब भर जाएगा। आधुनिक विज्ञान के आधार पर डॉ० जगदीशचन्द्र बसु ने यह सिद्ध कर दिखाया था कि जल की एक बूंद में 39,450 जीव पाए जाते हैं। ___ पण्डितप्रवर आशाधर जी ने जलगालन का प्रयोजन राग और हिंसा को दूर करना बतलाया है। उनके ही शब्दों में “रागजीव-वधापायं भूयस्त्वात्तद्वदुत्सृजेत् । रात्रिभक्तं तथा युंज्यान्न पानीयमगालितम् ।।" – (सागार धर्मामृत, 2/14 ) अर्थात् धर्मात्मा पुरुषों को मद्य, मांस, मधु आदि की भाँति राग और जीवहिंसा से बचने के लिए रात्रिभोजन का त्याग करना चाहिए। जो दोष रात्रिभोजन में लगते हैं, वही दोष अगालित पेय-पदार्थों में भी लगते हैं - यह जानकर बिना छने हुये जल, दूध, घी, तेल आदि द्रव्यों के सेवन का त्याग करना चाहिए। पानी छानने की विधि:-जलगालन-विधि समझने के पहले यह जान लेना आवश्यक है कि कौन-सा पानी पीने योग्य है और कौन-सा पीने योग्य नहीं है।' ब्र० पं० रायमल्लजी जल की शुद्धता के विषय में लिखते हुए कहते हैं कि तालाब, कुण्ड, अल्प जलवाली बहती हुई नदी, अकढ कुआँ (जिसे कुयें का पानी उँटता नहीं है) और छोटी बावड़ी का पानी तो छना हुआ होने पर भी पीने योग्य नहीं है। इस पानी में त्रस जीवों की राशि पाई जाती है। इसलिये जिस कुएँ का पानी पनघट पर छंटता हो, वह पीने योग्य है। नगरपालिका के नलों से होकर गन्दे स्थानों में मल-मूत्रादि तथा चमड़े को स्पर्श करता हुआ पाईप से बहने वाला जल पीने योग्य नहीं है। इसीकारण नल का पानी शुद्धता की दृष्टि से पीने के योग्य नहीं है। पानी को छानने के लिए दुहरा, मजबूत, गाढ़ा वस्त्र काम में लेना चाहिए। पतला कपड़ा, रूमाल, रंगीन, गांठ या गुड़ी (सलवटों) वाला, सिला हुआ तथा पहनने का वस्त्र पानी छानने के काम में नहीं लेना चाहिए। इस सम्बन्ध में पं० दौलतरामजी ने 'जैन क्रिया-कोष' में बहुत सुन्दर वर्णन किया है। उनके ही शब्दों में "इह तौ जल की क्रिया बताई, अब सुनि जलगालन विधि भाई। रंगे वस्त्र नहिं छानौ नीरा, पहरे वस्त्र न गालो रीरा ।। 1080 प्राकृतविद्या + अक्तूबर-दिसम्बर'98

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