Book Title: Prakrit Vidya 1998 10
Author(s): Rajaram Jain, Sudip Jain
Publisher: Kundkund Bharti Trust

View full book text
Previous | Next

Page 81
________________ जल-गालन की विधि तथा महत्ता -डॉ० देवेन्द्रकुमार शास्त्री __ जैनधर्म की सनातन, अनादि-अनिधन परम्परा में जल को छानकर पीने और उससे वस्त्रादि धोने की एक विशद-परम्परा रही है। जल को प्रासुक कर उपयोग में लेने की क्रिया वास्तव में वैज्ञानिक है। यह विज्ञानमात्र भौतिक न होकर धार्मिक भी है। इस धर्म-विज्ञान में आत्महित का संरक्षण मुख्य है। निज चैतन्यतत्त्व के संरक्षण के साथ इसमें अन्य प्राणियों के प्राणों के संरक्षण का विधान किया गया है। अत: केवल पानी छानने से अन्य जीवों की दया का ही नहीं, अपित आत्महित की प्रवृत्ति का प्रारम्भ होता है। किन्तु यह तभी सम्भव है, जब जल को 'गालन-विधि' के अनुसार छानकर प्रासुकरूप में काम में लिया जाए। 'भावपाहुड' की टीका में कहा गया है कि “वर्षा ऋतु में मुनिजन वर्षायोग धारण करते हैं, वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करते हैं। उस समय वृक्ष के पत्तों पर पड़ा हुआ वर्षा का जो जल साधु के शरीर पर गिरता है, उससे जलकायिक जीवों की विराधना का दोष नहीं लगता; क्योंकि वह जल 'प्रासुक' होता है।" शौच तथा स्नान के लिए ताड़ित पर्वतीय झरनों का जल, उष्ण जलवाले झरनों का जल, बावड़ी का गर्म जल 'प्रासुक' कहा गया है। 'रत्नमाला' (श्लोक 63-64) के उल्लेख के अनुसार “पाषाण को फोड़कर निकला हुआ अर्थात् पर्वतीय झरनों का अथवा रँहट के द्वारा ताड़ित हुआ जल और वापियों का गर्म-गर्म ताजा जल 'प्रासुक' है। इनके सिवाय अन्य सभी जल चाहे गंगा आदि का ही क्यों न हो, वह 'अप्रासुक' ही है।" 'व्रत-विधान-संग्रह' में कहा गया है—“छना हुआ जल दो घड़ी तक, हरड़ आदि से प्रासुक किया गया जल छह घण्टे तक और उबाला हुआ जल चौबीस घण्टे तक प्रासुक या पीने योग्य रहता है; उसके पश्चात् बिना छने हुए जल के समान हो जाता है।" इसप्रकार जैन श्रावकाचार के अनुसार निर्जन्तु शुद्ध जल छानकर ही काम में लेना चाहिए। कविवर पं० राजमल्लजी तो स्पष्ट रूप से कहते हैं "गालितं दृढवस्त्रेण सर्पिस्तैलं पयो द्रवम् । तोयं जिनागमाम्नायादाहरेत्स न चान्यथा ।।" -(लाटीसंहिता, सर्ग 2, श्लोक 23) अर्थात् घी, तेल, दूध आदि तरल पदार्थों को जैनशास्त्र में कही हुई विधि के अनुसार मजबूत गाढ़े वस्त्र से छानकर ही खाने/पीने के काम में लेना चाहिए; पतले (तरल) द्रव्यों को बिना छाने कभी भी काम में नहीं लेना चाहिए। पानी क्यों छानना चाहिए? पानी छानने का मूल प्रयोजन 'स्वस्थ' रहना है। आत्मिक दृष्टि से, शारीरिक प्राकृतविद्या+अक्तूबर-दिसम्बर'98 0079

Loading...

Page Navigation
1 ... 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128